तंत्र विद्या द्वारा समाधान...........
भारत की सबसे प्राचीन विद्याओं में "तंत्र" विद्या का महत्वपूर्ण स्थान है, तंत्र शास्त्र भगवान शिव जी के मुख से निकला हुआ शास्त्र है, इसीलिए इसे तंत्र विद्या को पवित्र और प्रमाणिक माना जाता है.लेकिन कुछ साधक इस तंत्र शक्ति का दुरूपयोग करने लग गये है जिसके फलस्वरूप यह तंत्र विद्या को कलंक और बदनामी का धब्बा भी सहन करना पड़ता है.
इसकी साधना अत्यंत कठिनाई से भरी हुयी है, गुरु गौरख नाथ जी के समय काल में समाज में तंत्र विद्या का अत्यधिक सम्मान मिलता था,
उस काल में समाज का प्रत्येक व्यक्ति तंत्र को अपना रहा था.जीवन की मुश्किल से मुश्किल समस्या को एकमात्र तंत्र ही आसानी से सुलझा सकता है.गुरु गौरख नाथ जी के बाद में भयानन्द जैसे लोगों ने तंत्र को भय का रूप दे दिया उन जैसे लोगों ने तंत्र को विकृत रूप से समाज के सामने प्रस्तुत किया,
"उन तांत्रिकों ने तंत्र के साथ भोग, विलास, मद्य, मांस आदि पंचमकार को भी इसका पर्याय मन लिया जिसके कारण तंत्र विद्या को अधिक हानि और बदनामी उठानी पड़ी."
"मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमैव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्रः सह तांत्रिकां "
भयानन्द जी के अनुसार जो साधक इन पांच मकार में लिप्त रहेगा वो ही तांत्रिक कहलायेगा, भयानन्द ने यहाँ तक कहा की मांस, मछली और मदिरा का सेवन आवश्यक है.तथा नित्य स्त्री संगम करता हुआ साधना करें, इस प्रकार की गलत धारणा भयानंद ने समाज में प्रचारित की फलस्वरूप ढोंगी और पाखंडी लोगों ने मिलकर तंत्र विद्या को हानि पहुंचाने लग गयें.
लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं.
इन सब में दोष तंत्र का नही रहा, बल्कि जो लोग पाखंडी और ढोंगी थे उन असामाजिक तत्वों ने इस तंत्र विद्या को बदनाम करने में कोई कसर नही छोड़ी जिससे समाज ने तंत्र का बहिष्कार करना शुरू कर दिया.
जब ऋषि मुनि मंत्र विद्या के द्वारा अपने साध्य देवता को अनुकूल बना लेते थे एक लम्बी साधना करनी पड़ती थी वर्षों तक मन्त्रों का जाप और कठिन आहार विहार के द्वारा अपने शरीर को कष्टमयी बना कर अधिक श्रम द्वारा साधना हुआ करती थी,
लेकिन अब युग परिवर्तन हुआ कलयुग के आगमन से समस्त सुविधा तथा जीवन में अत्यधिक व्यवस्ता के कारण समय तो बिलकुल ही समाप्त हो गया है, किसी को भी मंत्र द्वारा जाप करने का समय नही मिल रहा है,
इसी कारण से तंत्र की उपयोगिता में वृद्धि हुयी है मंत्र विद्या में देवता की प्रार्थना से उनको मनाया जाता है, लेकिन तंत्र में देवता को बाध्य करना पड़ता है जिससे देवता शीघ्र कामना पूर्ण करें.
मंत्र और तंत्र में साधना पद्धति एक जैसी है पूजन, न्यास आदि एक समान ही है, तंत्र में मंत्र अधिक तेज़ और जल्दी फल देने वाले होते है, जीवन की समस्त समस्याओं में तंत्र अचूक और अनिवार्य विद्या है.
इसलिए तंत्र अधिक महत्व पूर्ण हो गया है जिसमें कम से कम समय में सफलता मिल जाती है.समाज में इसका व्यापक प्रचार ना होने का एक कारण ये भी है कि तंत्र के कुछ अंश बहुत कठिन है, बिना गुरु के समझे नही जा सकते, अतः तंत्र का ज्ञान के अभाव में शंकाएं उत्पन्न होती है.
"तनोति त्रायति तंत्र" अर्थात तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तंत्र है. हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शन शास्त्र में तंत्र परम्पराएं मिलती है.इन धर्मों में तंत्र साधना द्वारा अधिक कार्य सिद्ध हुए है.
सर्व प्रथम साधक को अपनी रक्षा करने का साधन करना चाहिए.तभी तंत्र विद्या में रूचि उत्पन्न करें. श्री हनुमान जी की साधना तथा भैरव नाथ जी की साधना और माँ काली की उपासना कर के ही तंत्र का अभ्यास करना आवश्यक है.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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