गुरू गोरखनाथ,अवधूत दतात्रेय
,श्रीस्वामी,श्रीरामकृष्ण परमहंस,श्रीसाईबाबा,स्वामी समर्थ,तैलंग स्वामी,वामाखेपा,अघोरी कीनाराम ,आचार्य श्रीरामशर्मा ये सभी परम संत,साधक,तथा स्वयं परमतत्व ही है।
आज नकली साधक,संत से बाजार पटा है,सभी सिद्ध बनते है परन्तु ये किसी काम के नही है कारण माता धूमावती ने सभी को मोह से ग्रसित कर दिया है।
साधक को ज्यादा समय मिलता ही कहाँ जो शिविर लगाए,दीक्षा दे,ज्यादा भीड़ जुटाने वाले का लक्ष्य एक ही है कि मेरे भक्त ज्यादा लोग हो जाए और धनार्जन हो।दशमहाविद्या ब्रह्मविद्या है और इसके अधिपति शिव हैं।
बिना शिव कृपा किसी को महाविद्या की साधना फलीभूत नहीं होती।मेरा मन जब तक कृपण है,गणितीय बुद्धि है तब तक साधना के क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं हैं।ऐसी कोई समस्या नहीं है,जो धूमावती माता दूर न करे। भूख लगी हो उस समय शरीर का क्या हाल होता है,इसे कोई भी समझता है।
शिव ने लीला की और परम प्रेमी पुरूष शिव को ही उदरस्थ कर लिया यह जीव के प्रति शिव का प्रेम ही है, तभी तो करूणा से भरी उग्र शक्ति धूमावती को हम बार बार नमस्कार करते है।
माता हम सच्चे मन से आपको पकौड़ा,पकवान का भोग देकर आपकी स्तुति कर रहे है,हमारे,संतान,परिवार के साथ ही हमारे राष्ट की भी रक्षा करे,तभी तो दतिया में आप विराजमान है।आपकी जय हो,जय हो,जय हो।श्रीस्वामी सहित माता धूमावती को बार बार नमस्कार हैं।
इसके बाद उस सुपारी को माँ धूमावती का रूप मानते हुए,अक्षत,काजल,भस्म,काली मिर्च और तेल के दीपक से और उबाली हुयी उडद और फल का नैवेद्य द्वारा
उनका पूजन करे, तत्पश्चात उस पात्र के दाहिने अर्थात अपने बायीं और एक मिटटी या लोहे का छोटा पात्र स्थापित कर उसमे सफ़ेद तिलों की ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक दूसरी सुपारी स्थापित करे,और
निम्न ध्यान मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए माँ धूमावती के भैरव अघोर रूद्र का ध्यान करे –
त्रिपाद हस्त नयनं नीलांजनं चयोपमं,
शूलासि सूची हस्तं च घोर दंष्ट्राटट् हासिनम् ||
और उस सुपारी का पूजन,तिल,अक्षत,धूप-दीप तथा गुड़ से करे तथा काले तिल डालते हुए ‘ॐ अघोर रुद्राय नमः’ मंत्र का २१ बार उच्चारण करे |
इसके बाद बाए
हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से निम्न मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर छिडके –
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी |
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ||
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके |
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ||
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः |
सौभाग्यमयतं प्राप्य जाते देवितुरं ययौ ||
इसके बाद जिस थाली में माँ धूमावती की स्थापना की थी,उस सुपारी को अक्षत और काली मिर्च मिलकर निम्न मंत्र की आवृत्ति ११ बार कीजिये अर्थात क्रम से हर मंत्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत मिश्रित काली मिर्च डालते रहे |
ॐ भद्रकाल्यै नमः
ॐ महाकाल्यै नमः
ॐ डमरूवाद्यकारिणीदेव्यै नमः
ॐ स्फारितनयनादेव्यै नमः
ॐ कटंकितहासिन्यै नमः
ॐ धूमावत्यै नमः
ॐ जगतकर्त्री नमः
ॐ शूर्पहस्तायै नमः
इसके बाद निम्न मंत्र का जप रुद्राक्ष माला से २१,५१ , १२५ माला करें, यथासंभव एक बार में ही ये जप हो सके तो अतिउत्तम,अब मंत्र जाप प्रारंभ करे.
मंत्र:- ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट् ||
मंत्र जप के बाद मिटटी या लोहे के हवन कुंड में लकड़ी जलाकर १०८ बार घी व काली मिर्च के द्वारा आहुति डाल दें |
आहुति के दौरान ही आपको आपके आस पास एक तीव्रता का अनुभव हो सकता है और पूर्णाहुति के साथ अचानक मानो सब कुछ शांत हो जाता है…
इसके बाद आप पुनः स्नान कर ही सोने के लिए जाए और दुसरे दिन सुबह आप सभी सामग्री को बाजोट पर बीछे वस्त्र के साथ ही विसर्जित कर दें और जप माला को कम से कम २४ घंटे नमक मिश्रित जल में डुबाकर रखे और फिर साफ़ जल से धोकर और उसका पूजन कर अन्य कार्यों में प्रयोग करें |
इस प्रयोग को करने पर स्वयं ही अनुभव हो जाएगा की आपने किया क्या है,कैसे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती है ये तो स्वयं अनुभव करने वाली
बात है….
देवी धूमावती को आज तक कोई योद्धा युद्ध में नहीं परास्त कर पाया, तभी देवी का कोई संगी नहीं हैं।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08601454449
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
आज नकली साधक,संत से बाजार पटा है,सभी सिद्ध बनते है परन्तु ये किसी काम के नही है कारण माता धूमावती ने सभी को मोह से ग्रसित कर दिया है।
साधक को ज्यादा समय मिलता ही कहाँ जो शिविर लगाए,दीक्षा दे,ज्यादा भीड़ जुटाने वाले का लक्ष्य एक ही है कि मेरे भक्त ज्यादा लोग हो जाए और धनार्जन हो।दशमहाविद्या ब्रह्मविद्या है और इसके अधिपति शिव हैं।
बिना शिव कृपा किसी को महाविद्या की साधना फलीभूत नहीं होती।मेरा मन जब तक कृपण है,गणितीय बुद्धि है तब तक साधना के क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं हैं।ऐसी कोई समस्या नहीं है,जो धूमावती माता दूर न करे। भूख लगी हो उस समय शरीर का क्या हाल होता है,इसे कोई भी समझता है।
शिव ने लीला की और परम प्रेमी पुरूष शिव को ही उदरस्थ कर लिया यह जीव के प्रति शिव का प्रेम ही है, तभी तो करूणा से भरी उग्र शक्ति धूमावती को हम बार बार नमस्कार करते है।
माता हम सच्चे मन से आपको पकौड़ा,पकवान का भोग देकर आपकी स्तुति कर रहे है,हमारे,संतान,परिवार के साथ ही हमारे राष्ट की भी रक्षा करे,तभी तो दतिया में आप विराजमान है।आपकी जय हो,जय हो,जय हो।श्रीस्वामी सहित माता धूमावती को बार बार नमस्कार हैं।
इसके बाद उस सुपारी को माँ धूमावती का रूप मानते हुए,अक्षत,काजल,भस्म,काली मिर्च और तेल के दीपक से और उबाली हुयी उडद और फल का नैवेद्य द्वारा
उनका पूजन करे, तत्पश्चात उस पात्र के दाहिने अर्थात अपने बायीं और एक मिटटी या लोहे का छोटा पात्र स्थापित कर उसमे सफ़ेद तिलों की ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक दूसरी सुपारी स्थापित करे,और
निम्न ध्यान मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए माँ धूमावती के भैरव अघोर रूद्र का ध्यान करे –
त्रिपाद हस्त नयनं नीलांजनं चयोपमं,
शूलासि सूची हस्तं च घोर दंष्ट्राटट् हासिनम् ||
और उस सुपारी का पूजन,तिल,अक्षत,धूप-दीप तथा गुड़ से करे तथा काले तिल डालते हुए ‘ॐ अघोर रुद्राय नमः’ मंत्र का २१ बार उच्चारण करे |
इसके बाद बाए
हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से निम्न मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर छिडके –
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी |
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ||
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके |
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ||
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः |
सौभाग्यमयतं प्राप्य जाते देवितुरं ययौ ||
इसके बाद जिस थाली में माँ धूमावती की स्थापना की थी,उस सुपारी को अक्षत और काली मिर्च मिलकर निम्न मंत्र की आवृत्ति ११ बार कीजिये अर्थात क्रम से हर मंत्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत मिश्रित काली मिर्च डालते रहे |
ॐ भद्रकाल्यै नमः
ॐ महाकाल्यै नमः
ॐ डमरूवाद्यकारिणीदेव्यै नमः
ॐ स्फारितनयनादेव्यै नमः
ॐ कटंकितहासिन्यै नमः
ॐ धूमावत्यै नमः
ॐ जगतकर्त्री नमः
ॐ शूर्पहस्तायै नमः
इसके बाद निम्न मंत्र का जप रुद्राक्ष माला से २१,५१ , १२५ माला करें, यथासंभव एक बार में ही ये जप हो सके तो अतिउत्तम,अब मंत्र जाप प्रारंभ करे.
मंत्र:- ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट् ||
मंत्र जप के बाद मिटटी या लोहे के हवन कुंड में लकड़ी जलाकर १०८ बार घी व काली मिर्च के द्वारा आहुति डाल दें |
आहुति के दौरान ही आपको आपके आस पास एक तीव्रता का अनुभव हो सकता है और पूर्णाहुति के साथ अचानक मानो सब कुछ शांत हो जाता है…
इसके बाद आप पुनः स्नान कर ही सोने के लिए जाए और दुसरे दिन सुबह आप सभी सामग्री को बाजोट पर बीछे वस्त्र के साथ ही विसर्जित कर दें और जप माला को कम से कम २४ घंटे नमक मिश्रित जल में डुबाकर रखे और फिर साफ़ जल से धोकर और उसका पूजन कर अन्य कार्यों में प्रयोग करें |
इस प्रयोग को करने पर स्वयं ही अनुभव हो जाएगा की आपने किया क्या है,कैसे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती है ये तो स्वयं अनुभव करने वाली
बात है….
देवी धूमावती को आज तक कोई योद्धा युद्ध में नहीं परास्त कर पाया, तभी देवी का कोई संगी नहीं हैं।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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