दिव्य दृ्ष्टि यक्षिणी साधना
इस साधना के बाद साधक किसी भी मनुष्य के बारे मे आखे बन्द करके ही सब कुछ जान लेता है
वो जहॉ भी हो एकदम साफ साफ देख लेता है
कि सामने वाला क्या कर रहा है किस हाल मे है
योगी ध्यानी इसका अधिक प्रयोग करते है
ये प्रयोग पूर्ण रूप से गोपनीय है
मे इसे पहली बार आपलोगो के समक्ष पेश कर रहा हू
ये बहुत दुर्लभ साधना है
पूर्णिमा की रात नहा धोकर
साधक लाल वस्त्र पहने
लाल आसन पर बैठे
उत्तर मुख होकर
सामने यक्षिणी के लिये एक थाल रखे जिसमे सिन्दूर से स्वास्तिक बना ले
लाल कपडे की पट्टी जिसे आखो पर लपेट कर बाधॉ जा सके उतनी बडी होनी चाहिये
गुरू गणेश इष्ट कुल देव स्थान देव की पूजा दे
माता दुर्गा की पूजा दे
शिव पार्वती की पूजा दे
सभी से साधना मे सफलता का आशिर्वाद ले
फिर हाथ मे चावल लेकर दिव्या यक्षिणी का आवाहन करे
चावलो को थाल मे छोडे
फिर धूप दीप पुष्प गंध चन्दन इत्र सिन्दूर मिठाई कुमकुम आदि से पूजा करे
यक्षिणी का देवी रूप मे ही आवाहन पूजन करे
कोई सम्बंध ना बनाये
दिव्य दृष्टि के लिये ही केवल संकल्प लें
पूजन करके
उस लाल पट्टी को आखो पर बॉध ले फिर
एक माला गुरू मंत्र की करे फिर 21 माला मंत्र स्फटिक की माला से जाप करे
जाप उपांशु करे
जाप के बाद पट्टी खोल कर वही रख दे
जाप के बाद छमा याचना करे
वही कमरे मे ही सोये
येसा लगातार 15 दिन करे
पन्द्रहवे दिन अमावस्या को जाप करके उस पट्टी को आखो पर बॉध ले और फिर खोले नही लगातार तीन दिन तक बंधी रहने दे
साधना के बीच मे ही आपको रोशनी दिखाई देगी फिर वो साफ होकर चित्र रूप मे दिखने लगेगा
येसा होने पर साधना सिद्ध मानी जाती है
इसमे यक्षिणी दर्शन भी दे सकती है और वो सिर पर हाथ रखकर भी दिव्य दृष्टि खोल सकती है
इसमे यक्षिणी का दर्शन होना जरूरी नही है
तीन दिन पट्टी बॉधते वक्त अपने साथ किसी और को रख लेना जो दैनिक कार्यो मे मदद करेगा
या जो लोग पट्टी को तीन दिन लगातार नही बाध सकते वो साधना लगातार पूरे एक महीने तक विधिवत करे
यानि पूर्णिमा तक तो बीच मे ही दिव्य दृष्टि खुल जाती है
येसा होने पर पूजन का विसर्जन करे
यक्षिणी दर्शन दे तो ये समय की मॉग करती है तो जितने वर्ष के लिये दिव्य दृष्टि रखनी हो जैसे बीस साल तीस साल उतने दिन का बोल दे
साधना समाग्री दक्षिणा === 2100
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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