यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है. मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.
Wednesday, November 23, 2022
पारद (PARAD) : ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली तांत्रिक धातु
Wednesday, October 12, 2022
सावधान! आने वाली है महारात्रि, तंत्र-मंत्र और अदृश्य शक्तियों से बचें.
सावधान! आने वाली है महारात्रि, तंत्र-मंत्र और अदृश्य शक्तियों से बचें.
तंत्रशास्त्र में अनेक विधान हैं जैसे की टोना, टोटका, उपाय, उतारा, साधना सिद्धि आदि। टोना का उपयोग शत्रु के अनिष्ट के लिए होता है। जबकि टोटका स्वार्थ पूर्ति के लिए ही किया जाता है।
तंत्रशास्त्र का उपयोग त्यौहारों के आते ही आरंभ हो जाता है मगर तंत्रशास्त्र के अनुसार दीपावली पर किए गए टोटके अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। दीपावली पर मंत्र जगाए जाते हैं व विशेष सिद्धियों पर विजय पाई जाती है।
मॉडर्न युग में चाहे व्यक्ति मंगल पर पहुंच गया है मगर तंत्र-मंत्र में उसका विश्वास अडिग बना हुआ है। शास्त्रों में सांकेतिक भाषा में तंत्र-मंत्र के संबंध में कहा गया है। तंत्रशास्त्र में दो बातें मिलती हैं पहला साधना का फल व दूसरा विधि का अंश।
विधि विधान संकेतों में बताए गए हैं। किस मनोभूमि का व्यक्ति, किस काल, किन मंत्रों का किन उपकरणों द्वारा क्या प्रयोग करें, यह सब संकेत सूत्र में छिपाकर रखा गया है। तंत्रशास्त्र गुप्त इस कारण है कि अनाधिकारी लोग इसे प्रयोग न कर सकें। साधना और उसके विधि-विधान को गुप्त रखने के अनेक आध्यात्मिक कारण हैं।
संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थ, पुरुषार्थ, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है।
कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्त होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं।
इन महूर्तों में सर्वाधिक प्रबल महूर्त हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है।
बदलते समय के साथ दीपावली पर होने वाले टोने-टोटके और तांत्रिक गतिविधियों में अब कई तरह के बदलाव आ गए हैं। माना जाता है कि दीपावली के पांच दिनों में खास करके दीपावली की रात्रि कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं।
वे कई प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने-टोटके अपनाते हैं।
मान्यतानुसार दीपावली की महारात्रि देवी लक्ष्मी अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता रहती है, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।
जादू-टोना, व टोटका आदि का संबंध ऋग्वेदकाल से माना जाता है। अथर्ववेद में भी इन विषयों का वर्णन है। कई स्थानों पर नवरात्र आरंभ होते ही लोग सजग हो जाते हैं तथा उनकी यह सजगता दीपावली के खत्म होने तक बनी रहती है।
यहां तक की घर में बुजुर्ग स्त्रियों द्वारा भी घरेलू टोटके अपनाए जाते हैं। यह केवल गांवों ओर कस्बों तक ही सीमित नहीं बल्कि छोटे-बड़े शहरों में भी किए जाते हैं। त्यौहारों के मौसम में जब किसी दूसरे के घर से मिष्ठान आता है तो घर की महिलाएं उससे चुटकी भर पकावान निकाल कर फेंक देती हैं।
इसके बाद ही वह पारिवारिक सदस्यों को खाने के लिए देती हैं। उनका मानना होता है कि अगर खाने में कोई टोना-टोटका किया गया होगा तो परिजनो पर इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कुछ परिवारों में नजर उतारने हेतु थोड़ा सा नमक हाथों में लेकर नजर लगने वाले से उतारा जाता है और बाद में इसे पानी में बहा दिया जाता है।
मान्यता है कि इस टोटके से बुरी बलाएं पास नहीं फटकती। लड़कियों को बाल खोल कर न घूमने की हिदायत दि जाती है। यहां तक कि घर में छत या सुनसान जगहों पर खेलने की इजाजत नहीं देते।
मान्यतानुसार टोना सिद्ध करना मंत्र सिद्ध करने की अपेक्षा कठिन होता है। मंत्र को पढ़ उसे फेंका जाता है जबकि टोना केवल संकेत मात्र से काम कर जाता है। मंत्र को सिद्ध करने हेतु मांस-मदिरा की आवश्यकता पड़ती है।
टोना सिद्ध करने हेतु विभिन्न जानवरों के मल-मूत्र की आवश्यकता होती है। मंत्र झाड़ने हेतु पलीते का उपयोग होता है। टोना झाड़ने हेतु मोर पंख या झाड़ू का उपयोग होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सभी कर्म रात्रि के समय किए जाते हैं अर्थात सूर्य के आभाव में। जब महामावस्या अर्थात दीपावली पर चंद्रमा बलहीन हो जाता है तभी अभिचार कर्मा अपने परचम पर होता है।
नोट:
इस लेख का उद्देश्य नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए जानकारी देना मात्र है। दीपावली पर अनेक प्रकार के शास्त्रीय कवच अपनाकर व यंत्र पहनकर ऐसी नकारात्मक शक्तियों से बचा जा सकता है।
और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें
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Sunday, October 2, 2022
ब्रम्हा प्रेत प्रत्यक्षिकरण साधना.:-
ब्रम्हा प्रेत प्रत्यक्षिकरण साधना.:-
जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत
ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में
अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है।जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है ।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती
है।इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और
उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि
कहा जाता है।हिन्दू धर्म में गति और कर्म
अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन
किया है,आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे
अलग नामों से जाना जाता है। माना
गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती
मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
84 लाख योनियां पशुयोनि,पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं।आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते।यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है।बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।
पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण
करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों
का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है।
गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।
पृथ्वी पर अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व
विभिन्न स्थानों पर होता है । जीवित और निर्जीव वस्तुओं में वे अपने लिए केंद्र बना सकती हैं । जहां वे अपनी काली शक्ति संग्रहित कर सकती हैं, उसे केंद्र कहते
है ।
केंद्र उनके लिए प्रवेश करने का स्थान
होता है तथा वे वहां से काली शक्ति ग्रहण अथवा प्रक्षेपित कर सकती हैं । अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)अपने लिए साधारणतः मनुष्य, वृक्ष, घर, बिजली के उपकरण आदि में केंद्र बनाती हैं। जब वे मनुष्य में अपने लिए केंद्र बनाती हैं, तब उनका उद्देश्य होता है-खाना-पीना, धूम्रपान करना तथा लैंगिक वासनाओं की पूर्ति करना अथवा लेन-देन खाता पूर्ण करना । मूलभूत वायुतत्त्व से बनने के कारण सूक्ष्म-दृष्टि के बिना उन्हें देख पाना संभव नहीं होता है इसलिये आज मै यहा अदृश्य शक्तीयो को देखने का विधान दे रहा हू।
कुत्ते, घोडे, उल्लू तथा कौए जैसे पक्षी तथा कुछ प्राणी अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व के संदर्भ में अधिक संवेदनशील होते हैं । रातमें जब कुत्तों का बिना किसी दृश्य कारण से अचानक भौंकना तथा रोना उनके द्वारा अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व को समझ पाने के कारण होता है ।
भुतोका अस्तित्व है यह बात आज अमेरिका वाले भी मानते है और हमारे देश मे तो यह मान्यता पहीले से ही है ।
साधना विधी:-
सामग्री:-भूतकेशी नामक जडि से निर्मित काजल,काली हकिक माला और भूत रक्षा कवच । विशेषता यह सामग्री आवश्यक है,बिना सामग्री के साधना करने पर सफलता प्राप्त करना मुश्किल है ।
भूतकेशी:-यही जडि दुर्लभ है और हिमाचल प्रदेश के जंगल मे पायी जाती है,इसको घी मे पकाकर अग्नी के माध्यम से काजल निर्मित होता है ।इस जडि के काजल से अदृश्य शाक्तिया आसानी से देख सकते है क्युके इस जडि मे भूत का अस्तित्व सबसे ज्यादा होता है ।यह दिव्य काजल सिर्फ हमारे पास ही मिलता है ।
काली हकिक माला:-यह तो आज कल मार्केट मे आसानी से मिल जाती है ।
भूत रक्षा कवच:-यह जरुरी है अन्यथा भूत-प्रेत साधक पर हमला करते है तो इसे पहेनना आवश्यक है और आप सुरक्षित रहेगे.बिना सुरक्षा कवच के साधना करना नुकसान दायक होता है ।
यह साधना तीन दिवसिय है और इसे अमावस्या के तीन दिन पूर्व शुरूवात करना होता है,आखरी दिन अमावस्या होना चाहिये ।आसन-वस्त्र-काले रंग के हो और दक्षिण दिशा के तरफ मुख होना चाहिये ।
साधना एक बंद कमरे मे करनी है जहा किसी भी प्रकार की कोई भी रोशनी ना हो सिर्फ तीव्र सुगंध युक्त अगरबत्ती जला सकते है ।साधना मे तीसरे दिन भयानक दृश्य आखो के सामने प्रकट होते है जिसे देखकर डर लगता है परंतु रक्षा कवच पहेनने के बाद डरना नही चाहिये ।
तीसरे दिन भूत प्रत्यक्ष हो तो उससे कोई भी तीन प्रकार के वचन माँगे,जिससे भूत आपका प्रत्येक कार्य पूर्ण कर
दे ।
मंत्र-
ll ह्रीं क्रीं भुताय वश्यै फट ll
(hreem kreem bhootaay vashyai phat)
यह मंत्र दिखने मे छोटा है पर इसका प्रभाव तीव्र है ।यह मंत्र गुरू गोरखनाथ प्रणीत तंत्र से है जो शीघ्र सिद्धीप्रदायक है ।जब भूत सिद्धी होती है तो साधक भुतो से मनचाहा काम करवा सकता है ।आकर्षण-वशीकरण जैसे काम भुतो के लिये छोटे काम है तो सोचिये भूत क्या-क्या कर सकते होगे?इसलिये जीवन मे भुतसिद्धी महत्वपूर्ण है ।
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Sunday, July 24, 2022
दिव्य दृ्ष्टि यक्षिणी साधना
दिव्य दृ्ष्टि यक्षिणी साधना
इस साधना के बाद साधक किसी भी मनुष्य के बारे मे आखे बन्द करके ही सब कुछ जान लेता है
वो जहॉ भी हो एकदम साफ साफ देख लेता है
कि सामने वाला क्या कर रहा है किस हाल मे है
योगी ध्यानी इसका अधिक प्रयोग करते है
ये प्रयोग पूर्ण रूप से गोपनीय है
मे इसे पहली बार आपलोगो के समक्ष पेश कर रहा हू
ये बहुत दुर्लभ साधना है
पूर्णिमा की रात नहा धोकर
साधक लाल वस्त्र पहने
लाल आसन पर बैठे
उत्तर मुख होकर
सामने यक्षिणी के लिये एक थाल रखे जिसमे सिन्दूर से स्वास्तिक बना ले
लाल कपडे की पट्टी जिसे आखो पर लपेट कर बाधॉ जा सके उतनी बडी होनी चाहिये
गुरू गणेश इष्ट कुल देव स्थान देव की पूजा दे
माता दुर्गा की पूजा दे
शिव पार्वती की पूजा दे
सभी से साधना मे सफलता का आशिर्वाद ले
फिर हाथ मे चावल लेकर दिव्या यक्षिणी का आवाहन करे
चावलो को थाल मे छोडे
फिर धूप दीप पुष्प गंध चन्दन इत्र सिन्दूर मिठाई कुमकुम आदि से पूजा करे
यक्षिणी का देवी रूप मे ही आवाहन पूजन करे
कोई सम्बंध ना बनाये
दिव्य दृष्टि के लिये ही केवल संकल्प लें
पूजन करके
उस लाल पट्टी को आखो पर बॉध ले फिर
एक माला गुरू मंत्र की करे फिर 21 माला मंत्र स्फटिक की माला से जाप करे
जाप उपांशु करे
जाप के बाद पट्टी खोल कर वही रख दे
जाप के बाद छमा याचना करे
वही कमरे मे ही सोये
येसा लगातार 15 दिन करे
पन्द्रहवे दिन अमावस्या को जाप करके उस पट्टी को आखो पर बॉध ले और फिर खोले नही लगातार तीन दिन तक बंधी रहने दे
साधना के बीच मे ही आपको रोशनी दिखाई देगी फिर वो साफ होकर चित्र रूप मे दिखने लगेगा
येसा होने पर साधना सिद्ध मानी जाती है
इसमे यक्षिणी दर्शन भी दे सकती है और वो सिर पर हाथ रखकर भी दिव्य दृष्टि खोल सकती है
इसमे यक्षिणी का दर्शन होना जरूरी नही है
तीन दिन पट्टी बॉधते वक्त अपने साथ किसी और को रख लेना जो दैनिक कार्यो मे मदद करेगा
या जो लोग पट्टी को तीन दिन लगातार नही बाध सकते वो साधना लगातार पूरे एक महीने तक विधिवत करे
यानि पूर्णिमा तक तो बीच मे ही दिव्य दृष्टि खुल जाती है
येसा होने पर पूजन का विसर्जन करे
यक्षिणी दर्शन दे तो ये समय की मॉग करती है तो जितने वर्ष के लिये दिव्य दृष्टि रखनी हो जैसे बीस साल तीस साल उतने दिन का बोल दे
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Saturday, June 25, 2022
सिद्धकाली इतरयोनि वशीकरण प्रयोग
सिद्धकाली इतरयोनि वशीकरण प्रयोग
हम कई बार इतर योनि साधना करते है।कई बार सफल तो कई बार असफल होते है।उसके कई कारण हो सकते है। जैसे उर्जा की कमी ,एकाग्रता की कमी,किन्तु उसका एक कारण ये भी है की हमारे अन्दर आकर्षण नहीं है।किसी को अपने वशीभूत करने की क्षमता का विकास हुआ ही नहीं।
प्रस्तुत साधना प्रयोग इसी विषय पर है।देखने में भले ही यह अत्यंत छोटा प्रयोग लगता हो।किन्तु अपने अन्दर ये कई प्रकार की शक्तियां लिये हुए है।प्रस्तुत प्रयोग माँ सिद्धकाली से सम्बंधित है जो की सिद्धियों की दात्री है।
इस प्रयोग को यदि किसी भी इतर योनि साधना के पहले कर लिया जाये तो,सफलता के अवसर बड जाते है।क्युकी इस प्रयोग के माध्यम से आपके अन्दर उस इतर योनि को वशीभूत करने की क्षमता उतपन्न हो जाती है।यह प्रयोग मात्र एक दिवसीय है।
इसे आप किसी भी अमावस्या,रविवार,कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर सकते है,या आप जिस इतरयोनि की साधना करने जा रहे है,उस साधना के आरम्भ करने के ठीक एक दिन पहले भी इस प्रयोग को किया जा सकता है।
समय रात्रि ११ बजे के बाद का हो।आसन वस्त्र लाल। उत्तर दिशा की और मुख कर बैठ जाये।सामने बजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे।अब नारियल का सुखा गोला ले,जो की पूरा हो।अब इसे ऊपर से थोडा सा काट ले और इसके अन्दर एक मावे का पेड़ा,थोडा सा गुड और थोड़े से काले तील भर दे।
इसके बाद पुनः कटे हुए हिस्से को गिले आटे की सहायता से बंद कर दे।इसके बाद तील के तेल में सिंदूर मिलाकर,गोले पर बीज मंत्र " क्रीं " का अंकन करे।और उसे बजोट पर स्थापित कर दे।इस प्रयोग में माँ के चित्र या विग्रह आदि की आवश्यकता नहीं है।
आपको इसी गोले को माँ सिद्धकाली मानकर पूजना है।सामान्य पूजन करे,कुमकुम ,हल्दी,सिंदूर,अक्षत तथा लाल पुष्पों से पूजन करे।तील के तेल का दीपक जलाये।तथा भोग में गुड अर्पण करे।समस्त सामग्री अर्पण करते समय सतत निम्न मंत्र का जाप करते रहे।
क्रीं क्रीं सिद्ध कालिके क्रीं क्रीं फट
kreeng kreeng siddh kalike kreeng kreeng phat
इसके बाद आप किस इतरयोनि की साधना में सफलता के लिये यह प्रयोग कर रहे है इसका संकल्प ले।माँ सिद्ध कलि से प्रार्थना करे।इसके बाद मूंगा माला,रुद्राक्ष माला या काले हकिक की माला से निम्न मंत्र का २१ माला जाप करे।
ॐ क्रीं क्रीं सिद्धि दात्री सिद्धकाली अमुकं इतरयोनि वश्यं कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट
om kreeng kreeng siddhi datri siddhkaali amukam itaryoni vashyam kuru kuru kreeng kreeng phat
अमुकं की जगह उस इतर योनि का नाम ले जिसकी आप साधना करने वाले है।जाप के बाद घी में काले तील मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे,इस प्रकार यह एक दिवसीय प्रयोग संपन्न होता है।साधना के बाद या अगले दिन।
नारियल के गोले को उसी लाल वस्त्र में लपेट कर ले जाये।और किसी पीपल के पेड़ के निचे गाड़ दे।और एक तेल का दीपक प्रज्वलित कर माँ सिद्ध कलि से प्रार्थना कर लौट आये।
पीछे मुड़कर न देखे।अगर ये संभव न हो तो आप ये क्रिया किसी अन्य निर्जन स्थान में भी करके आ सकते है।तो विलम्ब कैसा अब समय आ गया है की माँ की कृपा प्राप्त की जाये,क्युकी अभी नहीं तो कभी नहीं।
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हमारे द्वारा अगले महीने से *पूरे भारत देश में अपनी सेवाएं शुरू की जा रही है* जिसके अंतर्गत *🕊️यदि आपके घर में कोई नेगेटिव एनर्जी है
या 🕊️आपके परिवार के किसी सदस्य के शरीर में कोई नेगेटिव एनर्जी है या 🕊️आपके घर या दुकान पर किसी ने कोई नेगेटिव एनर्जी छोड़ रखी है जिसके कारण आपका पारिवारिक और व्यापारिक जीवन तहस नहस हो गया है
🕊️ या आप अपने घर में पितृ शांति🕊️,वस्तु दोष निवारण,🕊️लक्ष्मी हवन🕊️,दस महाविद्या हवन🕊️,बगलामुखी हवन,🕊️कुल देवी स्थापना,🕊️अपने देवताओं को मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा,🕊️लक्ष्मी हवन* और आप चाहते हैं कि हम खुद आपके शहर ,आपके घर आकर उसका निवारण करें तो यह सेवा अगले महीने से शुरू की जा रही है
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दमन दीप ,आंध्र प्रदेश ,बिहार,
झारखंड, उड़ीसा ,उत्तराखंड
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Monday, April 25, 2022
वचन सिद्धि हनुमान वीर साधना
वचन सिद्धि हनुमान वीर साधना
* साधना नियम 7 दिन पूर्ण बह्मचर्य का पालन करना
* जमीन पर कपड़ा या चादर आदि बिछाकर सोना
* 7 दिन लहसुन ,अदरक, प्याज और बैंगन का प्रयोग ना करना
* एक समय भोजन करना , ओर 2 समय भोजन करो तो सिर्फ 2 समय के अलावा भोजन या नाश्ता ना करे,
* चाय , दूध, फल आदि खा सकते है
* 7 दिन किसी प्रकार का नशा नही करना
अगर नशा करने की आदत हो जैसे, खैनी, गुटका,बीड़ी, सिगरेट सिर्फ छोटे नशे तो उनका पहले वीर के नाम का भोग लगाएं यानी पहले वीर को चढ़ाए बाद में स्वयं कर सकते है( जहां खड़े या बैठे नशा कर रहे हो वहां पर ही मन मे वीर को याद लर भोग लगाएं)
* साधना हर रात 12 बजे के बाद मन्त्र जप करना रहेगा जप संख्या 108 बार
* 7 दिन साधना के चलते किसी स्त्री का अनादर करना और गाली देना सख्त मना है
* साधना दिनों में आप अपना रोजमरा का कार्य कर सकते है लेकिन हो सके उतना कम बोले।
* जैसे एक वीर कंगन होता है ठीक यह भी वैसे ही है
* ताबीज को धारण करने पर आपको हर रात वीर से जुड़े सपने भी आ सकते है , कानो में टुऊऊऊ जैसी ध्वनि भी हो सकती है, कान के अंदर कभी छोटी सी चुभन भी हो सकती है इन सब से घबराने की आवश्यकता नही है ये वीर का हिलना डुलना का संकेत है
* जो वचन कहे ताबीज को पहनकर कहे
* वचन सिद्ध होने यानी काम बनने के बाद एक सिगरेट का भोग लगाए यानी सिगरेट को जलाकर कही ऐसे स्थान पर रखे जो साफ, खुला ओर पवित्र हो
आपको हमारी तरफ से मंत्र दिया जाएगा जो पूर्ण शाबर मंत्र है और एक सिद्ध ताँबे का ताबीज भेजा जाएगा जो गुरु मन्त्र सिद्ध होगा जिसको धारण करने के बाद आपको पूरी साधना विधि विधान करना रहेगा
ओम गुरुजी को आदेश गुरजी को प्रणाम, धरती माता धरती पिता, धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छड़ा लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा, शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।।
7 दिवसीय साधना
शाबर मंत्र का प्रयोग कर 7 दिन की साधना से एक वीर ताबिज बनेगा जिसको पहनने के बाद आप जो भी बोलेंगे वह सत्य हो जाएगा
आइए पहले जानते है वचन (वाक) सिद्धि कैसे काम करती है
वाक सिद्धि यानी जो बोले वह सत्य हो जाता है
वाक सिद्धि एक ऐसी साधना है जिसको पूर्ण करने के बाद साधक जो बोलता है वह सत्य हो जाता है अगर कोई छोटा काम है तो वह कुछ ही दिनों में सत्य हो जाता है अगर कोई बड़ा कार्य है तो उसमे कुछ दिन या महीने लग सकते है
आपने कहा था गुस्से में उसको आंखों के सामने होता देखोगे तो वचन सिद्ध साधना करने वाले साधक को चाइए की उसकी वाणी उसके कंट्रोल में हो वह गुस्से पर काबू रख सके।
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सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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