दीपावली पर करें महाविद्या की तंत्र साधना
दीपावली पर करें महाविद्या की तंत्र साधना में महाविद्याओं का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ये महाविद्याएं दस हैं-
काली, तारा, षोड्शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, बगलामुखी, धूमावती, मातंगी और कमला।
इन दस महाविद्याओं का प्राकट्य शिव पत्नी आद्या शक्ति सती के अंग से हुआ है।
दसवीं महाविद्या कमला का प्राकट्य दिवस कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को हुआ था, इसीलिए इस दिन दीपावली महापर्व के रूप में मनाया जाता है।
कमलात्मिका, महालक्ष्मी, लक्ष्मी श्री, पद्मावती, कमलाया आदि नामों से पूजित कमला तांत्रिकों की परम आराध्य देवी हैं।
तंत्र साधना में विभिन्न मार्गों से आराधना की जाती है - वीर, शैव, कापालिक, पाशुपत, लिंगायन आदि।
किंतु तंत्र साधना पद्धति में दक्षिण मार्गी और वाममार्गी दो पथ प्रमुख रूप से प्रचलित है। तंत्र गं्रथों में सात आचारों वर्णन है - वेदाचार, वैष्णवाचार शैवाचार, दक्षिणाचार, वामाचार, सिंद्धाचार तथा कौलाचार।
ये मार्ग उŸारोŸार उŸाम माने गए हैं अर्थात् कौलाचार तांत्रिक सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक होता है। तंत्र और महाविद्या: शक्ति के उपासक तांत्रिक महाविद्या की ही आराधना करते हैं। काली, तारा, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी और षोडशी को काली कुल की देवी माना जाता है जिनकी साधना उग्र और दुःसाध्य होती है।
भैरवी, बगला, धूमावती, मातंगी और कमला ये पांच श्रीकुल की महाविद्याएं हैं। इनकी साधना काली कुल की देवियों की तुलना में सरल तथा सुसाध्य होती है।
भगवती कमला की साधना: जिस देवी या देवता की साधना पूजा करनी हो उसके मूल स्वरूप स्वभाव तथा उससे संबंधित संपूर्ण जानकारी अति आवश्यक है। पूजन के समय सर्वप्रथम ध्यान करने तथा ध्यान मंत्र श्लोक का उच्चारण इसी उद्देश्य से किया जाता है।
श्रीकमलात्मिका का उद्भव: जब देवताओं तथा दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब समुद्र से चैदह रत्न निकले जिनमें ‘कमला’ का प्राकट्य हुआ था। कमल पर आसीन लक्ष्मी के चार हाथ हैं, चार हाथी स्वर्ण कलशों में जल भर कर उनका अभिषेक कर रहें है, वह मणिमाणिक्य, दिव्य रत्न धारण किए हुए हैं।
श्री विद्या महात्रिपुर सुंदरी देवी षोडशी ने महालक्ष्मी को स्वयं में एक करके अपने समीप समकक्ष स्थान प्रदान किया।
कामाख्या धाम शाक्त तांत्रिकों का सबसे बड़ा तंत्र शक्ति पीठ है जहां कामाख्या रूप में षोडशी और उन्हीं के समीप कमला तथा मातंगी स्थापित हैं।
तंत्र शास्त्रों में महाविद्या की साधना में गणपति, शिव, बटुक तथा यक्षिणी साधना के भी निदेर्श दिए गए हैं अर्थात शक्ति की उपासना में शक्ति के साथ साथ शिव, गणेश, बटुक तथा यक्षिणी की आराधना पूजा करना अनिवार्य है। भगवती कमला के शिव भगवान नारायण गणेश ‘सिद्ध’, बटुक ‘सिद्ध’ तथा यक्षिणी ‘धनदा’ हैं।
तंत्र विधान के अनुसार शक्ति के साथ उक्त चारों शक्तियों का पूजन तथा मंत्र जप करना चाहिए।
कमला के मंत्र: ¬ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्षौ जगत्प्रसूत्यै नमः। ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालयै प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीें ¬ महालक्ष्म्यै नमः। ¬ श्रीं श्रीयै नमः।। ¬ ह्रीं श्रीं क्लीं कमल वासीन्यै स्वाहा।।
भगवान नारायण का मंत्र ¬ ¬
श्री हरि कमला वल्लभाय नमः
गणेश जी का मंत्र लक्ष्मी विनायक मंत्र ¬
श्रीं गं सौम्याय गण-पतये वर-वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।।
बटुक (भैरव) का मंत्र ¬
ह्रीं कमलाकान्ताय सिद्धनाथाय ह्रीं ¬
धनदा यक्षिणी का मंत्र ¬
रं श्रीं ह्रीं धं धनदे रतिप्रिये स्वाहा।।
।। जप विधानम्।।
जप के समय सर्व प्रथम गणेश मंत्र का जप करें। फिर बटुक मंत्र का जप करें। इसके पश्चात् कमला का कोई एक मंत्र का जप करें। फिर नारायण मंत्र और अंत में धनदा यक्षिणी के मंत्र का जप करना चाहिए। कमला के मूल मंत्र के जप के दशांश के बराबर अन्य मंत्रों का जप करना आवश्यक है।
जप के क्रमानुसार, जप संख्या का दशांश हवन तथा क्रमानुसार दशांश तर्पण और मार्जन करना चाहिए। हवन सामग्री में कमलगट्टे, विल्वफल, घी, शक्कर, तिल, शहद और कमल पुष्प का सम्मिश्रण होना चाहिए। तंत्र विधि से जप करने पर मनोकामना की पूर्ति निश्चित रूप से होती है।
धन-संपŸिा में स्थिरता आती है और लक्ष्मी की प्राप्ति के साथ-साथ मान सम्मान, प्रतिष्ठा, यश विजय, आरोग्यादि की भी प्राप्ति होती है।
वांछित फल की प्राप्ति के लिए दीपावली पर्व धनतेरस से द्वितीय तक पंच दिवसीय अनुष्ठान करना चाहिए है।
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