चंद्रहासिनी --- साधना
भगवान महादेव ने रावण को उसके तप से प्रसन्न होकर एक अमोघ अस्त्र प्रदान किया थें।
★चंद्रह्रास खड़ग★
इसकी विशेषता यह था कि यह सामने वाले शत्रु वर्ग का चंद्र बल नष्ट कर देता था । चंद्र का प्रभुत्व पृथ्वी वासियों में इतना अधिक है कि उसके हटते ही सामने वाला यूं ही अधमरा हैं।
जिनके चंद्र क्षीण हों , या कुंडली में चंद्र के आगे और पीछे के घर खाली हों, या पाप ग्रह युक्त (दरिद्र) हो, या केमद्रुम हो या निम्न/नीच राशी का हो, अथवा 10 डिग्री से कम / 22 से अधिक हो
ये सभी स्थितियों का परिणाम दरिद्रता और दुर्भाग्य के रूप में दृष्टिगत होता है जीवन में...
वो सभी चाहे चंद्र उनका त्रिकोणेश हो या नहीं हो वो इस प्रकार का चंद्र कवच चांदी में सुनार से बनवाकर उस पर प्राणप्रतिष्ठा करके, चंद्रमौलीश्वर की एवं चंद्र बीज मंत्र की यथा गुरु निर्दिष्ट जप करें (न्यूनतम 51-51 माला) और धारण करें ।
जिन्हें ज्यादा बैठने के अभ्यास नहीं हो वो 21दिनों तक कर लें।
【 चंद्र मौलीश्वर -
ॐ शं चं चंद्र मौलिश्वराय नमः
चंद्र बीज -
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः 】
और तंत्र एवं पाखंड में वास्तव में कितना अंतर है उसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। 100% प्रायोगिक प्रयोग हैं।
आरम्भ सोमवार से, माला कोई भी, दिशा आग्नेय (दक्षिण पूर्व का कोण) रहेगा बाकी कोई नियम विशेष की आवश्यकता नहीं।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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