यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है. मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.
Sunday, April 29, 2018
उपाय जो बदल देगाआपकी किस्मत
उपाय जो बदल देगाआपकी किस्मत
आपकी समस्याएं- -
क्या आप अपने जीवन से तंग आ चुके हैं? -
क्या आप धन की कमी से परेशान हैं? -
क्या आप पारिवारिक कलह से झुंझलाहट व क्रोध में रहते हैं। -
आप बच्चों की शादी से संकट में हैं? -
क्या आप कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाकर थक चुके हैं? -
क्या आपके ऊपर या परिजनों पर बुरी नजर लगी है? -
क्या आप हमेशा भाग्य को दोष देते रहते हैं? -
क्या आपका व्यापार-धंधा, उद्योग ठप है? -
क्या आपको नौकरी में प्रमोशन नहीं मिल रहा? -
क्या आप किसी को अपने वश में करना चाहते हैं? -
क्या आपकी जमीन, जायदाद जबरन हड़प ली है? -
क्या आप कोई नई नौकरी की तलाश में हैं? -
क्या आप एक अच्छा इंसान बनना चाहते हैं? -
क्या आपको मकान बनवाने में कई अड़चनें आ रही हैं? -
क्या आप अपनी धर्मपत्नी से परेशान हैं? -
क्या आप अपने पति की बुरी आदतें सुधारना चाहती हैं?
- क्या आपका बच्चा/बच्ची गुम हो गया है और सब प्रयासों के बावजूद वह नहीं मिल रहा है। -
क्या आप लव-मैरिज करना चाहते हैं? -
क्या आप अपनी सास को सुधारना चाहती हैं? - क्या आपका कहना आपके बच्चे नहीं मानते? -
क्या आप अपने बच्चों को परीक्षा में अच्छे नंबर दिलाना चाहते हैं? -
क्या आप बार-बार दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं? -
क्या आपके घर में बार-बार दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं?
एक उपाय जो बदल देगी आपकी किस्मत :-
हर धार्मिक ग्रंथ में एक ही उपाय बताया गया है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। ईश्वर सब जानता है।
लेकिन जब दुर्भाग्य साथ जुड़ जाता है तो जातक कुछ नहीं कर पाता।
कई वर्षों के शोध एवं अनुसंधान से हमारे संस्थान ने एक उच्चकोटि का तंत्र (ताबीज) स्वर्णभस्म, पारा एवं 18 अन्य बहुमूल्य चीजों से निर्मित किया है।
यह तंत्र (ताबीज) प्राण-प्रतिष्ठित किया हुआ है, जिसका प्रभाव जिंदगी भर रहता है। इसके गले में धारण करने से आपका दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल जाएगा। इसके धारण करते ही आप इसका प्रभाव स्वयं देख सकते हैं।
यंत्र की न्यौछावर मात्र 1100/- रुपये (सामान्य) एवं 2100 रुपये (स्पेशल) है।
नोट -
तंत्र (ताबीज) पहनकर किसी के निधन, उठावनी, क्रियाक्रम संस्कार में नहीं जाना है, न ही शवयात्रा के पास से गुजरना है।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम .
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Wednesday, April 25, 2018
तुलसी यक्षिणी साधना
तुलसी यक्षिणी साधना
प्रस्तुत साधना उन लोगो के लिये वरदान
सामान है जो सरकारी नोकरी पाना चाहते
है।
... क्युकी तुलसी यक्षिणी को ही राज्य पद
यक्षिणी भी कहा जाता है।अर्थात राज्य
पद देने वाली।अतः ये साधना राजनीती में भी सफलता देने वाली है।
यदि आपकी पदोन्नति नहीं हो रही है
तो,भी यह साधना की जा सकती है।
या सरकारी नोकरी की इच्छा रखते है
तो भी यह दिव्य साधना अवश्य संपन्न
करे।निश्चित आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी।
साधना समाग्री ---
तुलसी यक्षिणी यंत्र . गुटिका . यक्षिणी माला . सीफलल्य मुद्रिका.
सभी समान प्राण - प्रतिष्ठा युक्त मन्त्र सिद्धी होनी चाहिए .@
विधि :
साधना किसी भी शुक्रवार
की रात्रि से आरम्भ करे,समय रात्रि १०
बजे के बाद का हो,आपका मुख उत्तर
दिशा की और हो,आपके आसन वस्त्र
सफ़ेद हो।
प्रातः तुलसी की जड़ निकाल
कर ले आये और उसे साफ करके सुरक्षित रख ले,जड़ लाने के पहले निमंत्रण
अवश्य दे।
अब अपने सामने एक
तुलसी का पौधा रखे और उसका सामान्य
पूजन करे,दूध से बनी मिठाई का भोग
लगाये और तील के तेल का दीपक लगाये।
तुलसी की जड़ को अपने आसन के निचे रखे।अब स्फटिक माला से मंत्र की १०१
माला संपन्न करे।
यह क्रम तीन दिन तक
रखे,आखरी दिन घी में पञ्च
मेवा मिलाकर यथा संभव आहुति दे।बाद
में उस जड़ को सफ़ेद कपडे में लपेट कर
अपनी बाजु पर बांध ले।मिठाई नित्य स्वयं ही खाए।इस तरह ये दिव्य
साधना संपन्न होती है।
अगर आप ये
साधना ग्रहण काल में करते है तो मात्र एक
ही दिन में पूर्ण हो जाएगी।
अन्यथा उपरोक्त विधि से तो अवश्य कर
ही ले।कभी कभी इस साधना में प्रत्यक्षीकरण होते देखा गया है।अगर
ऐसा हो तो घबराये नहीं देवी से वर मांग
ले।
प्रत्यक्षीकरण न
भी हो तो भी साधना अपना पूर्ण फल
देती ही है,आवश्यकता है पूर्ण
श्रधा की।माँ सबका कल्याण करे।
मंत्र :
ॐ क्लीं क्लीं नमः
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
.
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Sunday, April 22, 2018
ग्रह दोष ख़त्म करने की हनुमान कवच मंत्र साधना
ग्रह दोष ख़त्म करने की हनुमान कवच मंत्र साधना
शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से आरम्भ करें
उत्तर अभिमुख होकर कुशासन पर बैठें
चौकी पर लाल वस्त्र पर ताम्बे की थाली पर केसर से ॐ लिख कर प्राणप्रतिष्ठित हनुमान यंत्र स्थापित करें
गुरु गणेश शिव गोरा राम दरबार का विधि वैट पूजन करें
सिंदूर का तिलक लगाकर पांचो उपचार पूजन करें
संकल्प ले
रुद्राक्ष की माला से ४१ माला ४१ दिन तक करें
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं सर्व दुष्टग्रह निवारणाय स्वाहा ||
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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64 योगिनी साधना
64 योगिनी साधना
64 योगिनियों की साधना सोमवार अथवा अमावस्या/ पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा गुरु का आशीर्वाद लें।
तत्पश्चात् गणेश मंत्र तथा गुरुमंत्र का जप किया जाता है ताकि साधना में किसी भी प्रकार का विघ्न न आएं।
इसके बाद भगवान शिव का पूजा करते हुए शिवलिंग पर जल तथा अष्टगंध युक्त अक्षत (चावल) अर्पित करें। इसके बाद आपकी पूजा आरंभ होती है। अंत में जिस भी योगिनि को सिद्ध करना चाहते हैं, उसके मंत्र की कम से कम एक माला (108 मंत्र) अथवा ग्यारह माला (1100 मंत्र) जप करें।
64 योगिनियों के मंत्र निम्न प्रकार हैं –
(1) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।
(2) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।
(3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।
(4) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।
(5) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।
(6) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।
(7) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।
(8) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।
(9) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।
(10) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।
(11) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।
(12) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।
(13) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।
(14) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।
(15) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।
(16) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।
(17) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।
(18) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।
(19) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।
(20) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।
(21) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।
(22) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।
(23) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।
(24) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।
(25) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।
(26) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।
(27) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।
(28) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।
(29) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।
(30) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।
(31) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।
(32) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।
(33) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।
(34) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।
(35) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।
(36) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।
(37) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।
(38) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।
(39) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।
(40) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।
(41) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।
(42) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।
(43) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।
(44) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।
(45) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।
(46) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।
(47) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।
(48) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।
(49) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।
(50) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।
(51) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।
(52) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।
(53) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।
(54) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।
(55) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।
(56) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।
(57) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।
(58) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।
(59) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।
(60) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।
(61) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।
(62) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।
(63) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।
(64) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।
मंत्र जप के बाद भगवान शिव की आरती करें तथा साधना समाप्त होने के बाद शिवलिंग पर चढ़ाएं चावल अलग से रख लें तथा अगले दिन बहते जल यथा नदी में प्रवाहित कर दें।
64 योगिनी साधना के लाभ :
जब भाग्यवश काफी प्रयासों के बाद भी कोई काम नहीं बन रहा है या प्रबल शत्रुओं के वश में होकर जीवन की आशा छोड़ दी हो तो इस साधना से इन सभी कष्टों से सहज ही मुक्ति पाई जा सकती है।
इस साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष बड़ी आसाना से दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है।
परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है।
नोट -'-
विशेष जानकारी
दुरूपयोग और गोपनीयता की दृष्टि से विधि अधूरी प्रकाशित की गई है
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Saturday, April 21, 2018
माँ बगलामुखी
माँ बगलामुखी
माँ बगलामुखी वैष्णवी शक्ति हैं
लेकिन इनमे त्रिशक्ति की शक्ति का समावेश है ! यही रहस्य कारण है की उपासक शीघ्र ही अपनी समस्याओं से मुक्ति पा लेता है ! माँ बगलामुखी शत्रु शमन के साथ धन के आभाव को दूर कर बल बुद्धि देती हैं ! बगलामुखी का उपासक एक श्रेष्ठ वक्ता बनता है !
तंत्र शास्त्रों में कहा गया है – शिव भूमि यूँतूं शक्तिनाद बिन्दु समन्वितम ! बीजं रक्षाम प्रोक्तं मुनिभिव्रतस वादिभि: !! माँ बगलामुखी दोनों रूपों , वाममार्ग और दक्षिणमार्ग से प्रसन्न होती हैं !
हमारे भारतवर्ष में माँ बगलामुखी के पांच सिद्ध पीठ बतलाये गए हैं ! इन सिद्ध स्थानों में माँ बगलामुखी स्वयं उपस्थित रहती हैं ! प्रथम सिद्ध पीठ हिमाचल प्रदेश में ,दूसरा मध्य प्रदेश में सतना के पास , तीसरा उज्जैन में चौथा दतिया में और पांचवां सिद्ध पीठ उत्तरकाशी में बडकोट के पास है !
अगर आप गृहस्थ हैं तब आप साधना और हवन के लिए हिमाचल प्रदेश और उज्जैन की बगलामुखी का चयन करें ! माँ बगलामुखी की साधना , उपासना , आराधना के अनेक विधान हैं , जिनमे तांत्रिक साधकों की तंत्र – मन्त्र साधना , ओघढ़ लोगों की अघोर साधना , कापालिकों , मशानिकों की वीर साधना और परमपूज्य नाथ लोगों की सिद्ध साधना प्रमुख है !
माँ बगलामुखी के पांच अस्त्र हैं जो भीषण प्रभाव रखते हैं जिनका प्रयोग कभी निष्फल नही जाता है विरोधियो और शत्रुओ में आतंक और हड़कंप मच जाता है–
बड़वामुखी, उल्कामुखी ,जातवेदमुखी , ज्वालामुखी और वृहद भानुमुखी हैं !
गृहस्थ लोगों को कभी भी बगलामुखी का अनुष्ठान , जाप शमशान में स्थित बगलामुखी के सामने नहीं कराना चाहिए ! इससे विपरीत , अनिष्टकारी परिणाम मिल सकते हैं !
तांत्रिक साधक बगलामुखी का हवन तांत्रिक विधि से करते हैं !
बगलामुखी तंत्र की सबसे शक्तिशाली देवी मानी गयी हैं ! तांत्रिक विधि द्वारा हवन कराने पर प्रत्येक पल देवी का प्रभाव देखने को मिलता है ! अनिवार्य शर्त यह है कि वह तांत्रिक हो और तांत्रिक विधि का अच्छा जानकार हो !
पाठीन-नेत्रां परिपूर्ण-गात्रां,
पञ्जेन्दिय-स्तम्भन-चित्त-रूपां ।
पीताम्बराढ्यां पिशिताशिनीं तां,
भजामि स्तम्भन-कारिणीं सदा।।
ध्यायेत् पद्यासनस्थां विकसितवदनां पद्यपत्राऽऽयताक्षीम्।
हेमाभां पीतवस्त्रां करकलितलसश्ध्देमपद्मां वराङ्गीम् ।।
सर्वाऽलङ्कारयुक्तां सततमभयदां भक्तनम्रां भवानीम् ।
श्रीविद्यां शान्तमूर्ति सकलसुरनुतां सर्वसम्प्प्रदात्रीम् ।।
चतुर्भुजां त्रि-नयनां पीत-वस्त्र-धरां शिवाम्।
वन्देऽहंं बगलां देवीं शत्रु-स्तम्भन-कारिणीम्॥
ध्यानम्
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासनसंस्थिताम्। त्रिशूलं पानपात्रंच गदां जिह्वां च बिभ्रतीम्।।
बिम्बोष्ठीं कम्बुकण्ठीं च समपीनपयोधराम्। पीताम्बरां मदाघूर्णां ध्यायेद् ब्रह्मास्त्रदेवताम्।।
उद्यत्सूर्यसहस्राभां पीनोन्नतपयोधराम्। पीतमाल्याम्बरधरां पीतभूषणभूषिताम्।।
गदामुद्गरहस्ताञ्च पीतगन्धानुलेपनाम्। लसन्नेत्रत्रयां स्वर्णमुकुटोद्भासिमस्तकाम्।।
गणेशग्रहनक्षत्रयोगिनीं राशिरूपिणीम्। देवीं पीठमयीं ध्यायेन्मातृकां बगलां पराम्।।
प्रत्यालीढपरां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ।
खर्वां लम्बोदरीं भीमां पीताम्बरपरिच्छदाम् ।।
नवयौवनसम्पन्नां पञ्चमुद्राविभूषिताम् ।
जतुर्भुजां ललज्जिह्वा महाभीमां वरप्रदाम् ।।
खड्गकर्त्रीसमायुक्तां सव्येतरभुजद्वयाम्।
कपालोत्पलसंयुक्तां सव्यपाणियुगान्विताम् ।
पिड्गोग्रैकसुखासीनां मौलावक्षोभ्यभूषिताम् ।
प्रज्वलत्पितृभूमध्यगतां दंष्ट्राकरालिनीम् ।
तां खेचरां स्मेरवदनां भस्मालड्कारभूषिताम् ।
विश्वव्यापकतोयान्ते पीतपद्मोपरिस्थिताम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
वकारे वारुणी देवी गकारेसिद्धिदा स्मृता।
लकारे पृथिवी चैव चैतन्या या प्रकीर्तिता।।
।।ॐ ह्रीं बगलामुख्यै नम:।।
धन प्राप्ति एवम् रोजगार के नये साधनों को बढाने के लिए मन्दार मन्त्र
।।श्रीं ह्लीं ऐं भगवती बगले में श्रियम देहि-देहि स्वाहा ।।
" ॐ कुलकुमार्यै विद्महे पीताम्बरायै धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात।।"
।। ॐ ह्ली पीताम्बराये ज्वालामालिन्यै शत्रुसेना विध्वंसन्ये स्वाहा ।।
" यन्त्रराजाय विद्मेह महायन्त्राय धीमहि तन्नो यन्त्रं प्रचोदयात्।
ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महाकराली राजमुखबन्धनं ग्राममुखबन्धनं ग्रामपुरूषबन्धनं कालमुखबन्धनं चौरमुखबन्धनं ब्याघ्रमुखबन्धनं सर्वदुष्टग्रहबन्धनं सर्वजनबन्धनं वशीकुरु हुं फट् स्वाहा।
'' ॐ ह्रैं ह्रूं वाग्वादिनि सत्यं सत्यं ब्रूहि वद वद बगलामुखि ह्रैं ह्रूं नम: स्वाहा।
'' बगलां सुन्दरीं ध्यायेद् द्विभुजां सर्वसिद्धिदाम्।"
ॐ हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ॐ स्वाहा
ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो बागला प्रचोदयात।
ॐ ह्रीं ऎं क्लीं श्री बगलानने मम रिपून नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवान्छितं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ।
राज गुरु जी
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Tuesday, April 17, 2018
रावण संहिता का उपाय
रावण संहिता का उपाय -
यह साधना साधक के अन्दर एक ऐसी उर्जा का निर्माण करती है जिससे की उसका काया कल्प
होता है।देह कांति युक्त हो जाती है,दाग आदि दूर हो जाते है,शरीर सुन्दर एवं सुडोल बन जाता है।
परिश्रम के साथ ही यदि हमें मंत्रो की शक्ति का सहयोग मिल जाये तो परिश्रम में सफलता
शीघ्रता से मिलती है।प्रस्तुत है इसी विषय पर एक तीव्र साधना .
साधना किसी भी शुक्रवार से आरम्भ करे समय शाम सूर्यास्त से रात्रि ३ बजे के मध्य का हो।आसन तथा
वस्त्र लाल या पीले हो,आपका मुख उत्तर की और हो।
सामने बाजोट पर पिला वस्त्र बिछाये और उस पर
शिवलिंग स्थापित करे,पारद शिवलिंग का हो तो उत्तम है अन्यथा जो भी शिवलिंग हो उसे स्थापित करे।अब शिवलिंग के
सामने एक रुद्राक्ष स्थापित करे।शिव का सामान्य पूजन करे,और देवी रति का रुद्राक्ष पर सामान्य पूजन करे।
तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई अर्पण करे।अब अपने सामने एक पात्र में
थोड़ी सी हल्दी रख ले,और मूल मंत्र पड़ते जाये ये आपको लगातार १ घंटे तक करना है,और
साथ ही रुद्राक्ष पर थोड़ी थोड़ी हल्दी अर्पण करते जाना है।साधना के बाद मिठाई
स्वयं खा ले।
ये क्रिया नित्य ३ दिनों तक करे,अंतिम दिन साधना के बाद घी में लोबान मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे।अगले
दिन रुद्राक्ष को मंत्र पड़ते हुए गुलाब जल से स्नान करवाए और लाल धागे में डालकर गले में धारण कर ले।फिर नित्य थोड़े से जल
पर मंत्र को २१ बार या उससे अधिक पड़कर अभी मंत्रित कर ले।और जल पि जाये,नहाने के जल को भी
इससे अभीमंत्रित किया जा सकता है।निसंदेह आपकी देह कुछ ही दिनों में अद्भूत तेज से भर
जाएगी।
आवश्यकता है साधना को पूर्ण विश्वास से करने की।
***मंत्र***
॥ॐ रति रति महारती कामदेव की दुहाई संसार की सुंदरी भुवन
मोहिनी अनंग प्रिया मेरे शरीर में आवे,अंग अंग सुधारे,जो न सुधारे तो कामदेव पर वज्र पड़े॥
यह प्रयोग अति विलक्षण प्रयोग ह
राज गुरु जी
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Monday, April 16, 2018
चमत्कारी यक्षिणी साधना
।। चमत्कारी यक्षिणी साधना ।।
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं. यक्षिणी साधना को करने से साधक की मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं तथा इस साधना को करने से साधक को दुसरे के मन की बातों को जानने की शक्ति भी प्राप्त होती हैं, साधक की बुद्धि तेज होती हैं.
यक्षिणी साधना को करने से कठिन से कठिन कार्यों की सिद्धि जल्द ही हो जाती हैं.
बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं।
यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है।
यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की शक्ति'। आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं:- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, भल्ल, किरात, नाग आदि। ये सभी मानवों से कुछ अलग थे।
इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे।
देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है। कहते हैं कि यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक। बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं, लेकिन यह सच नहीं है।
रावण के सौतेला भाई कुबेर एक यक्ष थे, जबकि रावण एक राक्षस। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं- इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ।
इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस। जिस तरह प्रमुख 33 देवता होते हैं, उसी तरह प्रमुख 8 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं।
गंधर्व और यक्ष जातियां देवताओं की ओर थीं तो राक्षस, दानव आदि जातियां दैत्यों की ओर। यदि आप देवताओं की साधना करने की तरह किसी यक्ष या यक्षिणियों की साधना करते हैं तो यह भी देवताओं की तरह प्रसन्न होकर आपको उचित मार्गदर्शन या फल देते हैं।
उत्लेखनीय है कि जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे।
उपनिषद की एक कथा अनुसार एक यक्ष ने ही अग्नि, इंद्र, वरुण और वायु का घमंड चूर-चूर कर दिया था।यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है।
किसी योग्य गुरु या जानकार से पूछकर ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए। यहां प्रस्तुत है यक्षिणियों की चमत्कारिक जानकारी। यह जानकारी मात्र है साधक अपने विवेक से काम लें।
शास्त्रों में 'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों की है।
ये प्रमुख यक्षिणियां है -
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होकर सहायता करती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध करने के लिए किसी योग्य गुरु या जानकार से इसके बारे में जानें।
मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र :
॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥
सुर सुन्दरी यक्षिणी :
इस यक्षिणी की विशेषता है कि साधक उन्हें जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होती ही है- चाहे वह मां का स्वरूप हो, चाहे वह बहन या प्रेमिका का। जैसी रही भावना जिसकी वैसे ही रूप में वह उपस्थित होती है या स्वप्न में आकर बताती है।
यदि साधना नियमपूर्वक अच्छे उद्देश्य के लिए की गई है तो वह दिखाई भी देती है। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है। देव योनी के समान सुन्दर सुडौल होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है।
सुर सुन्दरी मंत्र :
॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
मनोहारिणी यक्षिणी :
मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के बाद यह यक्षिणी साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है कि वह दुनिया को अपने सम्मोहन पाश में बांधने की क्षमता हासिल कर लेता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट करती है।
मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा है। उनके शरीर से निरंतर चंदन की सुगंध निकलती रहती है।
मनोहारिणी मंत्र :
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥
कनकावती यक्षिणी :
कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
यह यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है। माना जाता है कि यह यक्षिणी यह लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाली षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा है।
कनकावती मंत्र :
ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥
कामेश्वरी यक्षिणी :
यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख की कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छापूर्ण करती है। साधक को जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है तो वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है।
यह यक्षिणी सदैव चंचल रहने वाली मानी गई है। इसकी यौवन युक्त देह मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है।
कामेश्वरी मंत्र :
ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥
रति प्रिया यक्षिणी :
इस यक्षि़णी को प्रफुल्लता प्रदान करने वाली माना गया है। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है।
साधक-साधिका को यह कामदेव और रति के समान सौन्दर्य की उपलब्धि कराती है। इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान है जो सभी तरह के मंगल आभूषणों से सुसज्जित है।
रति प्रिया मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥
पदमिनी यक्षिणी :
पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति की ओर अग्रसर करती है।
यह हमेशा साधक के साथ रहकर हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाती है। श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है।
पद्मिनी मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥
नटी यक्षिणी :
यह यक्षिणी अपने साधक की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है।
यह सभी तरह की घटना-दुर्घटना से भी साधक को सुरक्षित बचा ले आती है। उल्लेखनीय है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।
नटी मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥
अनुरागिणी यक्षिणी :
यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है।
अनुरागिणी मंत्र :
ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती।
तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।
साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है।
साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।
साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।
ऐसे ही साधकों के लिए 'उड़ामरेश्वर तंत्र' मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।
।।यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन ।।
ज्योतिषों के अनुसार यदि आषाढ़ माह में शुक्रवार के दिन पूर्णिमा हैं तो यक्षिणी साधना को करने का सबसे शुभ दिन अगले सप्ताह में आने वाला गुरुवार हैं.
इसके अलावा यक्षिणी साधना को करने की शुभ तिथि श्रावण मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा हैं.
यह यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन इसलिए माना जाता हैं. क्योंकि इस दिन चंद्रमा में शक्ति अधिक होती हैं. जिससे साधक को उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं.
यक्षिणी साधना की विधि –
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं
शिवजी का मन्त्र –
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा-ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा-ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा
1. यक्षिणी साधना को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूजा की सारी सामग्री को इकट्ठा कर लें.
2. यक्षिणी साधना का आरम्भ करने के लिए सबसे पहले शिव जी की पूजा सामान्य विधि से करें.
3. इसके बाद एक केले के पेड़ या बेलगिरी के पेड़ के नीचे यक्षिणी की साधना करें.
4. यक्षिणी साधना को करने से आपका मन स्थिर और एकाग्र हो जायेगा. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रों का जाप पांच हजार बार करें.
5. जाप करने के बाद घर पहुंच कर कुंवारी कन्याओं को खीर का भोजन करायें.
।।यक्षिणी साधना की दूसरी विधि ।।
यक्षिणी साधना को करने का एक और तरीका हैं. इस विधि के अनुसार यक्षिणी साधना करने के लिए वट के या पीपल के पेड़ नीचे शिवजी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना कर लें.
अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण पांच हजार बार करते हुए पेड़ की जड में जल चढाए।
।।यक्षिणी साधना के नियम ।।
1.यक्षिणी साधना को करने लिए ब्रहमचारी रहना बहुत ही जरूरी हैं.
2. इस साधना को प्राम्भ करने के बाद साधक को अपने सभी कार्य भूमि पर करने चाहिए.
3.यक्षिणी साधना की सिद्धि हेतु साधक को नशीले पदार्थों का एवं मांसाहारी भोजन का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए.
4.यक्षिणी साधना को करते समय सफेद या पीले रंग के वस्त्रों को ही केवल धारण करना चाहिए.
5.इस साधना को करने वाले साधक को साबुन, इत्र या किसी प्रकार के सुगन्धित तेल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए तथा उसे अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए।
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है।
किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।
साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे।
अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।बिना गुरु के साधना करने पर अहित होने से हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Friday, April 13, 2018
अष्ट यक्षिणी साधना
अष्ट यक्षिणी साधना
जीवन में रस आवश्यक है
जीवन में सौन्दर्य आवश्यक है
जीवन में आहलाद आवश्यक है
जीवन में सुरक्षा आवश्यक है
ऐसे श्रेष्ठ जीवन के लिए संपन्न करें
अष्ट यक्षिणी साधना
बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं।
यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है।
यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।
तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती। तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।
साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है। साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।
साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।
ऐसे ही साधकों के लिए
'उड़ामरेश्वर तंत्र' मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।
'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों, जो साधक के जीवन में सम्पूर्णता का उदबोध कराती हैं, की ये है।
ये प्रमुख यक्षिणियां है -
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी २. मनोहारिणी यक्षिणी 3. कनकावती यक्षिणी 4. कामेश्वरी यक्षिणी
5. रतिप्रिया यक्षिणी 6. पद्मिनी यक्षिणी 6. नटी यक्षिणी 8. अनुरागिणी यक्षिणी
प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध कर लें।
सुर सुन्दरी यक्षिणी
यह सुडौल देहयष्टि, आकर्षक चेहरा, दिव्य आभा लिये हुए, नाजुकता से भरी हुई है। देव योनी के समान सुन्दर होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है। सुर सुन्दरी कि विशेषता है, कि साधक उसे जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होता ही है - चाहे वह माँ का स्वरूप हो, चाहे वह बहन का या पत्नी का, या प्रेमिका का। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।
मनोहारिणी यक्षिणी
अण्डाकार चेहरा, हरिण के समान नेत्र, गौर वर्णीय, चंदन कि सुगंध से आपूरित मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहन बना देती है, कि वह कोई भी, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री, उसके सम्मोहन पाश में बंध ही जाता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट कराती है।
कनकावती यक्षिणी
रक्त वस्त्र धारण कि हुई, मुग्ध करने वाली और अनिन्द्य सौन्दर्य कि स्वामिनी, षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा कनकावती यक्षिणी है। कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने कि क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है।
कामेश्वरी यक्षिणी
सदैव चंचल रहने वाली, उद्दाम यौवन युक्त, जिससे मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है। साधक का हर क्षण मनोरंजन करती है कामेश्वरी यक्षिणी। यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख कि कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में साधक कि कामना करती है। साधक को जब भी द्रव्य कि आवश्यकता होती है, वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है।
रति प्रिया यक्षिणी
स्वर्ण के समान देह से युक्त, सभी मंगल आभूषणों से सुसज्जित, प्रफुल्लता प्रदान करने वाली है रति प्रिया यक्षिणी। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य कि उपलब्धि होती है।
पदमिनी यक्षिणी
कमल के समान कोमल, श्यामवर्णा, उन्नत स्तन, अधरों पर सदैव मुस्कान खेलती रहती है, तथा इसके नेत्र अत्यधिक सुन्दर है। पद्मिनी यक्षिणी साधना साधक को अपना सान्निध्य नित्य प्रदान करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान कराती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है।
नटी यक्षिणी
नटी यक्षिणी को 'विश्वामित्र' ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार कि विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है।
अनुरागिणी यक्षिणी
अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है। साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है तथा साधक की इच्छा होने पर उसके साथ उल्लास करती है।
साधना विधान
इस साधना में आवश्यक सामग्री है -
साधना मे विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जिस पे १५००-१८०० रुपये तक खर्च आता है, अष्ट यक्षिणी ही अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र जिसे सिर्फ पुर्णिमा के रात्री मे प्राण-प्रतिष्ठित किया जा सकता है तभी वह यंत्र सिद्धिप्रद बनाता है और इसलिये यह तो श्रेष्ठ उफार होगा, यक्षिणी माला माला जिसका हर मणि चैतन्य होना चाहिये,बाकी जो भी ४ प्रकार की सामग्री लगती है उन्हे यहा पे लिखना संभव नहीं परंतु जिन साधको की इस साधना मे रुचि है मै उन्हे संपर्क करने के बाद बता दुगा,क्यूके मुजे कुछ छुपाना नहीं है,
इस साधना मे मै विशेष रूप से साधको की सहायता करुगा,पूर्ण साधना मे आपको मेरा मार्गदर्शन मिलता रहेगा,और इस बार अष्ट यक्षिणी को तो आना ही है,मै दावे के साथ बोलता हु आप मेहनत करने के लिये तयार हो तो अष्ट यक्षिणी सिद्ध होगी,क्यूके मंत्र और साधना अनुभूतित है चैतन्य है गुरुजी प्रदत्व है और कई साधक भाई ओ की सिद्ध साधना है..............
८ अष्टाक्ष गुटिकाएं
अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र
यक्षिणी माला
साधक यह साधना किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ कर सकता है। यह तीन दिन की साधना है। लकड़ी के बजोट पर सफेद वस्त्र बिछायें तथा उस पर यंत्र स्थापित करे ।
यंत्र में जहां 'ह्रीं' बीज अंकित है वहां एक-एक अष्टाक्ष गुटिका स्थापित करें। फिर अष्ट यक्षिणी का ध्यान कर प्रत्येक गुटिका का पूजन कुंकूम, पुष्प तथा अक्षत से करें। धुप तथा दीप लगाएं। फिर यक्षिणी से निम्न मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार दिए गए हुए आठों यक्षिणियों के मंत्रों की एक-एक माला जप करें।
प्रत्येक यक्षिणी मंत्र की एक माला जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। उदाहरणार्थ पहले मूल मंत्र की एक माला जप करें, फिर सुर-सुन्दरी यक्षिणी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमशः प्रत्येक यक्षिणी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है। ऐसा तीन दिन तक नित्य करें।
मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र
॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः ॥
सुर सुन्दरी मंत्र
॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
मनोहारिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥
कनकावती मंत्र
॥ ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥
कामेश्वरी मंत्र
॥ ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥
रति प्रिया मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥
पद्मिनी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥
नटी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥
अनुरागिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार से साधना संपन्न करें, तीसरे दिन साधना साधना सामग्री को जिस वस्त्र पर यंत्र बनाया है, उसी में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।
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Thursday, April 12, 2018
पिशाचिनी या पैशाचिनी साधनाएं
पिशाचिनी या पैशाचिनी साधनाएं :
पिशाची देवी ही पिशाचिनी साधनाओं की अधिष्ठात्री देवी है। यह हमारे हृदय चक्र की देवी है। इसे बहुत ही खतरनाक तरह की साधनाएं माना जाता है।
किसी भी एक पिशाचिनी की साधना करने के बाद व्यक्ति को चमत्कारिक सिद्धि प्राप्त हो जाती है। पिशाचिनी साधना में कर्ण पिशाचिनी, काम पिशाचिनी आदि का नाम प्रमुख है।
पिशाच शब्द से यह ज्ञात होता है कि यह किसी खतरनाक भूत या प्रेत का नाम है लेकिन ऐसा नहीं है। यह साधनाएं भी तंत्र के अंतर्गत आती है।
कर्ण पिशाचिनी साधना को सिद्ध करने के बाद साधक में वो शक्ति आ जाती है कि वह सामने बैठे व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत जानकारी भी जान लेता है। कर्ण पिशाचिनी साधक को किसी भी व्यक्ति की किसी भी तरह की जानकारी कान में बता देती है। इस साधना की सिद्धि के पश्चात् किसी भी प्रश्न का उत्तर कोई पिशाचिनी कान में आकर देती है अर्थात् मंत्र की सिद्धि से पिशाच-वशीकरण होता है।
मंत्र की सिद्धि से वश में आई कोई आत्मा कान में सही जवाब बता देती है। पारलौकिक शक्तियों को वश में करने की यह विद्या अत्यंत गोपनीय और प्रामाणिक है।
साधना मे विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है जिस पे १५००-१८०० रुपये तक खर्च आता है, पिशाची देवी ही पिशाचिनी यंत्र जिसे सिर्फ पुर्णिमा के रात्री मे प्राण-प्रतिष्ठित किया जा सकता है तभी वह यंत्र सिद्धिप्रद बनाता है और इसलिये यह तो श्रेष्ठ उफार होगा, पिशाचिनी माला जिसका हर मणि चैतन्य होना चाहिये,बाकी जो भी ४ प्रकार की सामग्री लगती है उन्हे यहा पे लिखना संभव नहीं परंतु जिन साधको की इस साधना मे रुचि है मै उन्हे संपर्क करने के बाद बता दुगा,क्यूके मुजे कुछ छुपाना नहीं है,
इस साधना मे मै विशेष रूप से साधको की सहायता करुगा,पूर्ण साधना मे आपको मेरा मार्गदर्शन मिलता रहेगा,और इस बार पिशाचिनी को तो आना ही है,मै दावे के साथ बोलता हु आप मेहनत करने के लिये तयार हो तो पिशाचिनी होगी,क्यूके मंत्र और साधना अनुभूतित है चैतन्य है गुरुजी प्रदत्व है और कई साधक भाई ओ की सिद्ध साधना है..............
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