Sunday, January 29, 2017

वामाचार काली योनी साधना

महाकाली, महाकाल की वह शक्ति है जो काल व समय को नियन्त्रित करके सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करती हैं। आप दसों महाविद्याओं में प्रथम हैं और आद्याशक्ति कहलाती हैं।

चतुर्भुजा के स्वरूप में आप चारों पुरूषार्थों को प्रदान करने वाली हैं जबकि दस सिर, दस भुजा तथा दस पैरों से युक्त होकर आप प्राणी की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को गति प्रदान करने वाली हैं।

 शक्ति स्वरूप में आप शव के उपर विराजित हैं। इसका अभिप्राय यह है कि शव में आपकी शक्ति समाहित होने पर ही शिव, शिवत्व को प्राप्त करते हेैं। यदि शक्ति को शिव से पृथक कर दिया जाये तो शिव भी शव-तुल्य हो जाते हैं। शिव-ई = शव । बिना शक्ति के सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और शिव शव के समान हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस सम्पूर्ण सृष्टि में शिव और शक्ति ही सर्वस्व हैं। उनके अतिरिक्त किसी का कोई आस्तित्व नहीं है।

आज के युग में माँ महाकाली की साधना कल्पवृक्ष के समान है क्योकि ये कलयुग में शीघ्र अतिशीघ्र फल प्रदान करने वाली महाविद्याओं में से एक महा विद्या है. जो साधक महाविद्या के इस स्वरुप की साधना करता है उसका मानव योनि में जन्म लेना सार्थक हो जाता है क्योकि एक तरफ जहाँ माँ काली अपने साधक की भौतिक आवश्कताओं को पूरा करती है वहीँ दूसरी तरफ उसे सुखोपभोग करवाते हुए एक-छत्र राज प्रदान करती है।

किसी भी शक्ति का बाह्य स्वरुप प्रतीक होता है उनकी अन्तः शक्तियों का जो की सम्बंधित साधक को उन शक्तियों का अभय प्रदान करती हैं, अष्ट मुंडों की माला पहने माँ यही तो प्रदर्शित करती है की मैं अपने हाथ में पकड़ी हुयी ज्ञान खडग से सतत साधकों के अष्ट पाशों को छिन्न-भिन्न करती रहती हूँ, उनके हाथ का खप्पर प्रदर्शित करता है ब्रह्मांडीय सम्पदा को स्वयं में समेट लेने की क्रिया का,क्यूंकि खप्पर मानव मुंड से ही तो बनता है और मानव मष्तिष्क या मुंड को तंत्र शास्त्र ब्रह्माण्ड की संज्ञा देता है,अर्थात माँ की साधना करने वाला भला माँ के आशीर्वाद से ब्रह्मांडीय रहस्यों से भला कैसे अपरिचित रह सकता है।कालीकी साधना से

 वीरभाव,ऐश्वर्य,सम्मान,वाक् सिद्धि और उच्च तंत्रों का ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होने लगता है,अद्भुत है माँ काली जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय रहस्यों को ही अपने आप में समेत हुआ है और जब साधक इनकी कृपा प्राप्त कर लेता है तो एक तरफ उसे समस्त आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से अभय प्राप्त हो जाता है वही उसे माँ काली की मूल आधार भूत शक्ति और गोपनीय तंत्रों में सफलता की कुंजी भी तो प्राप्त हो जाती है।

वाममार्ग

 शाक्तवाद का ही एक रूप माना जाता है। किसी काल में लघु एशिया से लेकर चीन तक, मध्य एशिया और भारत आदि दक्षिणी एशिया में शाक्तमत का एक न एक रूप में प्रचार रहा। कनिष्क के समय में महायानऔर वज्रयान मत का विकास हुआ था और बौद्ध शाक्तों के द्वारा पंचमकार की उपासना इनकी विशेषता थी।

वामतंत्र में जो प्रयोग ऋषियों ने किये वे सुख की खोज में अद्वितीय तो हैं ही उनके परिणाम विश्वसनीय भी हैं। वामाचार में प्रत्येक साधक को उसकी कामना और क्षमता के अनुसार भोग करने के संसाधन दिये जाते थे, जिन्हें पंच मकार कहते हैं, यथा, मांस, मदिरा, मछली, मुद्रा तथा मैथुन।

वाममार्ग के साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं क्योंकि सृष्टि का प्रथम बीजरूप उत्पत्ति यही है। ‘लिंग’ का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। इन दोनों के मिलने से सृष्टि का आदि परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड का या किसी भी इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि  एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।

योनी तंत्र के अनुसार (जो माता पारवती और भगवान् शिव कासंवाद है ) ब्रह्मा ,विष्णु और महेश तीनों शक्तियों का निवासप्रत्येक नारी की योनी में है क्योंकि हर स्त्री देवी भगवती का ही अंशहै ।दश महाविद्या अर्थात देवी के दस पूजनीय रूप  भी योनी में निहित है.

 अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिएमन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी पूजाद्वारा  करनी चाहिए। योनी तंत्र में भगवान् शिव ने स्पष्ट कहा हैकी श्रीकृष्ण ।श्रीराम और स्वयं शिव भी योनी पूजा से ही शक्तिमानहुए हैं ।

 भगवान् राम ,शिव जैसे योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनीतत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहागया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष कीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवतीका अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं”। अतःअपना भविष्य उज्जवल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों कातिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह साधना अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है,जो आज तक गोपनीय रहा है।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Saturday, January 28, 2017

ओशो का वह प्रवचन, जिससे ईसायत तिलमिला उठी थी और अमेरिका की रोनाल्‍ड रीगन सरकार ने उन्‍हें हाथ-पैर में बेडि़यां डालकर गिरफ्तार किया और फिर मरने के लिए थेलियम नामक धीमा जहर दे दिया था। इतना ही नहीं, वहां बसे रजनीशपुरम को तबाह कर दिया गया था और पूरी दुनिया को यह निर्देश भी दे दिया था कि न तो ओशो को कोई देश आश्रय देगा और न ही उनके विमान को ही लैंडिंग की इजाजत दी जाएगी। ओशो से प्रवचनों की वह श्रृंखला आज भी मार्केट से गायब हैं।

पढिए वह चौंकाने वाला सच !

जब भी कोई सत्‍य के लिए प्‍यासा होता है, अनायास ही वह भारत में उत्‍सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्‍लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्‍य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। ईसा मसीह भी भारत आए थे।

ईसामसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्‍लेख नहीं है। और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्‍योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्‍हें सूली ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइाबिल में उन सालों को क्‍यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्‍हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसायत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं।

यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्‍मे, यहूदी की ही तरह जिए और यहूदी की ही तरह मरे। स्‍मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्‍होंने तो-ईसा और ईसाई, ये शब्‍द भी नहीं सुने थे। फिर क्‍यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्‍यों ? न तो ईसाईयों के पास इस सवाल का ठीक-ठाक जवाबा है और न ही यहूदियों के पास। क्‍योंकि इस व्‍यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। ईसा उतने ही निर्दोष थे जितनी कि कल्‍पना की जा सकती है।
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्‍म था।

पढ़े-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्‍पष्‍ट देख लिया था कि वे पूरब से विचार ले रहे हैं, जो कि गैर यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ले रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्‍हें समझ आएगा कि क्‍यों वे बारा-बार कहते हैं- '' अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्‍थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्‍हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।'' यह पूर्णत: गैर यहूदी बात है। उन्‍होंने ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं।

ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्‍यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे। पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्‍क उसमें डूबा हुआ था। बुद्ध की करुणा, क्षमा और प्रेम के उपदेशों को भारत पिए हुआ था।
जीसस कहते हैं कि '' अतीत के पैगंबरों द्वारा यह कहा गया था।

'' कौन हैं ये पुराने पैगंबर?'' वे सभी प्राचीन यहूदी पैगंबर हैं: इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,- '' कि ईश्‍वर बहुत ही हिंसक है और वह कभी क्षमा नहीं करता है!? '' यहां तक कि प्राचीन यहूदी पैगंबरों ने ईश्‍वर के मुंह से ये शब्‍द भी कहलवा दिए हैं कि '' मैं कोई सज्‍जन पुरुष नहीं हूं, तुम्‍हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्‍यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं।'' पुराने टेस्‍टामेंट में ईश्‍वर के ये वचन हैं।

और ईसा मसीह कहते हैं, '' मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्‍मा प्रेम है।'' यह ख्‍याल उन्‍हें कहां से आया कि परमात्‍मा प्रेम है? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्‍मा को प्रेम कहने का कोई और उल्‍लेख नहीं है।

उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्‍त, भारत, लद्दाख और तिब्‍बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्‍कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं।

तुम्‍हें जानकर आश्‍चर्य होगा कि अंतत: उनकी मृत्‍यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्‍य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्‍या हुआ? आजकल वे कहां हैं ? क्‍योंकि उनकी मृत्‍यु का तो कोई उल्‍लेख है ही नहीं !

सच्‍चाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए। वास्‍तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे। क्‍योंकि यहूदियों की सूली आदमी को मारने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है। उसमें आदमी को मरने में करीब-करीब 48 घंटे लग जाते हैं। चूंकि हाथों में और पैरों में कीलें ठोंक दी जाती हैं तो बूंद-बूंद करके उनसे खून टपकता रहता है। यदि आदमी स्‍वस्‍थ है तो 60 घंटे से भी ज्‍यादा लोग जीवित रहे, ऐसे उल्‍लेख हैं। औसत 48 घंटे तो लग ही जाते हैं। और जीसस को तो सिर्फ छह घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था। यहूदी सूली पर कोई भी छह घंटे में कभी नहीं मरा है, कोई मर ही नहीं सकता है।

यह एक मिलीभगत थी, जीसस के शिष्‍यों की पोंटियस पॉयलट के साथ। पोंटियस यहूदी नहीं था, वो रोमन वायसराय था। जूडिया उन दिनों रोमन साम्राज्‍य के अधीन था। निर्दोष जीसस की हत्‍या में रोमन वायसराय पोंटियस को कोई रुचि नहीं थी। पोंटियस के दस्‍तखत के बगैर यह हत्‍या नहीं हो सकती थी।पोंटियस को अपराध भाव अनुभव हो रहा था कि वह इस भद्दे और क्रूर नाटक में भाग ले रहा है। चूंकि पूरी यहूदी भीड़ पीछे पड़ी थी कि जीसस को सूली लगनी चाहिए। जीसस वहां एक मुद्दा बन चुका था। पोंटियस पॉयलट दुविधा में था।

यदि वह जीसस को छोड़ देता है तो वह पूरी जूडिया को, जो कि यहूदी है, अपना दुश्‍मन बना लेता है। यह कूटनीतिक नहीं होगा। और यदि वह जीसस को सूली दे देता है तो उसे सारे देश का समर्थन तो मिल जाएगा, मगर उसके स्‍वयं के अंत:करण में एक घाव छूट जाएगा कि राजनैतिक परिस्थिति के कारण एक निरपराध व्‍यक्ति की हत्‍या की गई, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया था।
तो पोंटियस ने जीसस के शिष्‍यों के साथ मिलकर यह व्‍यवस्‍था की कि शुक्रवार को जितनी संभव हो सके उतनी देर से सूली दी जाए। चूंकि सूर्यास्‍त होते ही शुक्रवार की शाम को यहूदी सब प्रकार का कामधाम बंद कर देते हैं, फिर शनिवार को कुछ भी काम नहीं होता, वह उनका पवित्र दिन है।

यद्यपि सूली दी जानी थी शुक्रवार की सुबह, पर उसे स्‍थगित किया जाता रहा। ब्‍यूरोक्रेसी तो किसी भी कार्य में देर लगा सकती है। अत: जीसस को दोपहर के बाद सूली पर चढ़ाया गया और सूर्यास्‍त के पहले ही उन्‍हें जीवित उतार लिया गया।

 यद्यपि वे बेहोश थे, क्‍योंकि शरीर से रक्‍तस्राव हुआ था और कमजोरी आ गई थी। पवित्र दिन यानि शनिवार के बाद रविवार को यहूदी उन्‍हें पुन: सूली पर चढ़ाने वाले थे। जीसस के देह को जिस गुफा में रखा गया था, वहां का चौकीदार रोमन था न कि यहूदी। इसलिए यह संभव हो सका कि जीसस के शिष्‍यगण उन्‍हें बाहर आसानी से निकाल लाए और फिर जूडिया से बाहर ले गए।

जीसस ने भारत में आना क्‍यों पसंद किया? क्‍योंकि युवावास्‍था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे। उन्‍होंने अध्‍यात्‍म और ब्रह्म का परम स्‍वाद इतनी निकटता से चखा था कि वहीं दोबारा लौटना चाहा। तो जैसे ही वह स्‍वस्‍थ हुए, भारत आए और फिर 112 साल की उम्र तक जिए।

कश्‍मीर में अभी भी उनकी कब्र है। उस पर जो लिखा है, वह हिब्रू भाषा में है। स्‍मरण रहे, भारत में कोई यहूदी नहीं रहते हैं। उस शिलालेख पर खुदा है, '' जोशुआ''- यह हिब्रू भाषा में ईसामसीह का नाम है। 'जीसस' 'जोशुआ' का ग्रीक रुपांतरण है। 'जोशुआ' यहां आए'- समय, तारीख वगैरह सब दी है।

' एक महान सदगुरू, जो स्‍वयं को भेड़ों का गड़रिया पुकारते थे, अपने शिष्‍यों के साथ शांतिपूर्वक 112 साल की दीर्घायु तक यहांरहे।' इसी वजह से वह स्‍थान 'भेड़ों के चरवाहे का गांव' कहलाने लगा। तुम वहां जा सकते हो, वह शहर अभी भी है-'पहलगाम', उसका काश्‍मीरी में वही अर्थ है-' गड़रिए का गांवा'

जीसस यहां रहना चाहते थे ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सकें। एक छोटे से शिष्‍य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकि वे सभी शांति में, मौन में डूबकर आध्‍यात्मिक प्रगति कर सकें। और उन्‍होंने मरना भी यहीं चाहा, क्‍योंकि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)जीवन एक सौंदर्य है और यदि तुम मरने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)मरना भी अत्‍यंत अर्थपूर्ण है।

केवल भारत में ही मृत्‍यु की कला खोजी गई है, ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है। वस्‍तुत: तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं।

यहूदियों के पैगंबर मूसा ने भी भारत में ही देह त्‍यागी थी!
इससे भी अधिक आश्‍चर्यजनक तथ्‍य यह है कि मूसा (मोजिज) ने भी भारत में ही आकर देह त्‍यागी थी! उनकी और जीसस की समाधियां एक ही स्‍थान में बनी हैं। शायद जीसस ने ही महान सदगुरू मूसा के बगल वाला स्‍थान स्‍वयं के लिए चुना होगा। पर मूसा ने क्‍यों कश्‍मीर में आकर मृत्‍यु में प्रवेश किया?

मूसा ईश्‍वर के देश 'इजराइल' की खोज में यहूदियों को इजिप्‍त के बाहर ले गए थे। उन्‍हें 40 वर्ष लगे, जब इजराइल पहुंचकर उन्‍होंने घोषणा की कि, '' यही वह जमीन है, परमात्‍मा की जमीन, जिसका वादा किया गया था। और मैं अब वृद्ध हो गया हूं और अवकाश लेना चाहता हूं। हे नई पीढ़ी वालों, अब तुम सम्‍हालो!''

मूसा ने जब इजिप्‍त से यात्रा प्रारंभ की थी तब की पीढ़ी लगभग समाप्‍त हो चुकी थी। बूढ़े मरते गए, जवान बूढ़े हो गए और नए बच्‍चे पैदा होते रहे। जिस मूल समूह ने मूसा के साथ यात्रा की शुरुआत की थी, वह बचा ही नहीं था। मूसा करीब-करीब एक अजनबी की भांति अनुभव कर रहे थेा उन्‍होंने युवा लोगों शासन और व्‍यवस्‍था का कार्यभारा सौंपा और इजराइल से विदा हो लिए।

यह अजीब बात है कि यहूदी धर्मशास्‍त्रों में भी, उनकी मृत्‍यु के संबंध में , उनका क्‍या हुआ इस बारे में कोई उल्‍लेख नहीं है। हमारे यहां (कश्‍मीर में ) उनकी कब्र है। उस समाधि पर भी जो शिलालेख है, वह हिब्रू भाषा में ही है। और पिछले चार हजार सालों से एक यहूदी परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन दोनों समाधियों की देखभाल कर रहा है।

मूसा भारत क्‍यों आना चाहते थे ? केवल मृत्‍यु के लिए ? हां, कई रहस्‍यों में से एक रहस्‍य यह भी है कि यदि तुम्‍हारी मृत्‍यु एक बुद्धक्षेत्र में हो सके, जहां केवल मानवीय ही नहीं, वरन भगवत्‍ता की ऊर्जा तरंगें हों, तो तुम्‍हारी मृत्‍यु भी एक उत्‍सव और निर्वाण बन जाती है।
सदियों से सारी दुनिया के साधक इस धरती पर आते रहे हैं। यह देश दरिद्र है, उसके पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, पर जो संवेदनशील हैं, उनके लिए इससे अधिक समृद्ध कौम इस पृथ्‍वी पर कहीं नहीं हैं। लेकिन वह समृद्धि आंतरिक है।

~ओशो (पुस्‍तक: मेरा स्‍वर्णिम भारत)

राजगुरु जी

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Tuesday, January 24, 2017

तिलोत्तमा अप्सरा

तिलोत्तमा अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं।

 इस साधना को शुरु करते ही एक – दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने होने की पूर्व सुचना हैं। अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत बहुत ही जरुरी हैं। एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ।

 सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं। सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त किया जा सकता हैं।

इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं हैं।

साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए।

 अप्सरा , गुरु, धार्मिक ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं।

 अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।

एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा से ही करे ।

मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।

पूजा सामग्री:-

 सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, एक स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम, अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))

विधि :

पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।

बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)

ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)

ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,.........
.......... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधि
पतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।

दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ

 “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा”

मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं।

आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।

ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः।

मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।

ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।

यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे।

अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।
पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।
ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं। ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।

भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं। मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं। मेरा मतलब हैं कि बहुत ही गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द ना करें।

यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"।

यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ वाक सिद्ध होती हैं।

किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।

ऐसा करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं। इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए। किसी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।

मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए। यदि किसी को साधना करने मे कोई दिक्कत हो रही हैं तो हमसे भी सम्पर  किया जा सकता हैं।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Wednesday, January 18, 2017

रावण संहिता की सबसे दिव्य साधनाओं में से एक अति शक्तिशाली और तीव्र फलगामी साधना हम यहाँ दे रहे हैं
भूतडामर तंत्र के अनुसार इस योगिनी की कृपा से ही कुबेर धनवान बने थे

योगिनीयों में सर्व प्रधान है सुरसुन्दरी है इनकी साधना करने वाले के पास जीवन में कोई कमी नही रहती, वो सर्व शक्तिशाली और विद्वान बन जाता है सुरसुन्दरी जीवन उसके साथ रहकर उसकी आग्या का पालन करती है.. सुरसुन्दरी की साधना इस तरह से है
सबसे पहले प्रातः काल में स्नान करके शुद्ध होकर
आसन पर बैठे

और

"ऊँ हौं"

इस मन्त्र से आचमन करे
आचमन के बाद

 " ऊँ हुं फट् "

 इस मन्त्र से दिग्बन्धन करें

फिर मूल मन्त्र से प्राणायाम करके करऩ्गन्यास करें
अष्टदल पद्म अंकित करके जीवन्यास करें
चौकी पर अष्ट दल कमल बनाकर उसमें सुरसुन्दरी का ध्यान करें

ये ध्यान का मंत्र है

" पूर्ण चंद्र निभां गौरीं विचित्राम्बरधारिणीम् "
" पीनोतुंगकुचां वामां सर्वेषाम् अभयप्रदाम "

इस प्रकार ध्यान करके मूल मंत्र से पाद्यादि द्वारा धूप दीप नैवेद्य और गुलाब के फूलों से पूजा करें

इस मंत्र का जप करें ये ही मूल मंत्र है

" ऊँ ह्रीं आगच्छ सुरसुन्दरी स्वाहा "

सुबह, दोपहर और शाम इन तीनों यमय में एक एक हजार जप करना है इसी मंत्र का
किसी भी महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक साधना करनी है

अर्ध रात्रि को देवी साधक के पास आती है हो सकता है वो आपकी परीक्षा भी ले
साधक देवी को सन्मुख प्रसन्न देखकर चन्दन और पुष्प द्वारा अर्घ्य दे

और अपना वर मांगे, उस समय साधक देवी को माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन करे

साधक यदि सुरसुन्दरी को माता मानेगा तो देवी साधक को मनोहर द्रव्य प्रदान करती है और उसे राजा तक बना देती स्वर्ग और पाताल से जो चाहे वस्तु लाकर देती है, और प्रतिदिन देवी साधक के निकट आकर उसका पुत्र के समान पालन करती है

यदि साधक देवी को बहन माने तो वो कई तरह के दिव्य पदार्थ और दिव्य वस्त्र प्रदान करती है तथा देवकन्या और नागकन्या लाकर देती है, भूत भविष्य वर्तमान सब बताती है

यदि साधक देवी को पत्नी माने तो संसार में वो सबसे शक्तिशाली हो जाता है कोई उसे नुकसान नही पहुंचा सकता, वो साधक स्वर्ग, मर्त्य और पाताल में बेरोक टोक जाने की शक्ति पा लेता है

और देवी जो सब शकेतियां साधक को देती है उसका वर्णन नही किया जा सकता
साधक उनके साथ सुख संभोग करता हुआ समय बिताता है, इस प्रकार देवी भार्या रूप में पाने के बाद साधक दूसरी स्त्री की चाह ना करे नही तो देवी क्रोधित होकर साधक का नाश कर देती है

यह विधि पूर्ण निष्ठा पर लाभ देती ह

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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शमशान सिध्दी

यह क्रिया एक पात्र खप्पर में सात प्रकार की मिठाई रखे साथ में 2 पान 2 सुपारी 2 इलायची 2 लोंग मदिरा साथ में रखें।शमशान में 41 दिन नित्य प्रति दिन सरसों के तेल का दीपक बीना पीछे देखे लगाकर अपने जगह पर आयें ।काली माई माँ के रूप में बहन के रूप में स्त्री के रूप में दर्शन देती है।उसे माॅ के रूप में स्वीकार कर के खप्पर का भोग दे माता प्रसन्न होकर शमशान सिध्दी देती है।

इस क्रिया में जोर जोर से चिमटे बजते हैं।बडी ऊंची आवाजे हाक आती है।आदि डरावने चित्र दिखाई देते हैं
साधक को सावधान व निर्भय होकर कार्य करना चाहिए इस विधि में डर गए साधक स्त्री को गलत इच्छा से व किसी भी तरह की कमी आने से साधक पागल होता है या मृत्यु का भय बना रहता है।इसलिए शमशान सिध्दी सिध्द गुरु के सानिध्य में करना चाहिए।

"शमशान में काली का मंत्र"

सतनाम आदेश ।गुरु जी को आदेश ऊँ गुरूजी ।ऊँ काली काली महाकाली ब्रम्हा की बेटी इंद्र की साली ,मधमासकारी विजया खाय मांस भरवे मसाने जो जो चीतवू सो सो आन ।रिद्धि सिद्धि लियावो हो हो भसमंति माई जहां पाई तहाँ लगाई ।

सति नाती धरम की बेटी अचलनाथ की चेली मन मानें तो संग रमाई, नहीं तो फिरें अकेली ओ महाकाली सुंदर माई चार वीर आठ भैरव अब पूजू पा पान को मिठाई बोल काली माई की दुहाई गुरु की मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इशवरो वाचा ऊँ फट स्वाहा। आदेश आदेश

यह मंत्र शमशान में सवा लाख बार करें।

इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए ग्राम या शहर की सीमा में दिपक रखकर आते समय पीछे ना देखे ।अपने जगह वापस आने पर हाथ पैर धो लें यह क्रिया निर्भय होकर करें। इसके लिए आपको बंध मंत्र का जाप करना चाहिए

राजगुरु जी

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Monday, January 16, 2017

भूत-प्रेत बधा निवारण

हवन के राख से किसी भी भूत-प्रेत ग्रस्त रोगी को सात बारमहामृतुन्जय मंत्र पढ़ते हुए झाड़ दें तथा हवन के राख का टीका लगा दें फिर भोजपत्र पर चैतिसा यंत्र को अष्टगंध से लिख कर तांबे के ताबीज में भर कर पहना दें तो भूत प्रेत बाधा सदा के लिए दूर हो जाता है।

राजगुरु जी

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Thursday, January 12, 2017

तंत्र प्रेट सिद्धी

हमारे चारों ओर फैला ब्रह्मांड हवा और धुएं का केन्द्र मात्र नहीं है, अपितु इसमें निहित है ऐसे रहस्य और ऐसा ज्ञान जिसका अगर एक अंश मात्र भी यदि किसी की भी समझ में आ जाये तो उसकी जीवन धारा ही बदल जाती है!!!!

 क्योंकि ब्रह्मांडीय ज्ञान कोई कोरी कपोल कल्पना ना हो के इस समस्त चराचर विश्व की उत्पत्ति और विध्वंस का करोडों बार साक्षी बन चुका है और जब तक सृजन और संहार का क्रम चलता रहेगा इस ब्रह्मांडीय ज्ञान में इजाफा होता जायेगा.......पर यह ज्ञान हम किताबों से या बड़े बड़े ग्रंथो को पढ़ कर प्राप्त नहीं कर सकते...किन्तु यह ग्रंथ उस ज्ञान को कुछ हद तक समझने में हमारी संभव सहायता जरूर करते हैं.

परमसत्ता अपना ज्ञान देने में कभी कोई कोताहि नहीं करती पर उसके लिए मात्र एक ही शर्त है की आप में पात्रता होनी चाहिए. ब्रह्मांडीय ज्ञान को हम दो तरह से अर्जित कर सकते हैं



१) आगम स्तर

 २) निगम स्तर

 !!!!

 आगम ६४ तरह के तांत्रिक ज्ञान पर आधारित है और निगम वेदों पर निर्भर करता है.....खैर निगम ज्ञान या वेद शास्त्र यहाँ हमारा विषय नहीं है तो हम बात करते हैं तंत्र ज्ञान की जिसे गुहा ज्ञान या रहस्यमय ज्ञान भी कहते हैं.

 क्योंकि तंत्र कोई चिंतन-मनन करने वाली विचार प्रणाली नहीं है या यूँ कहें की तंत्र कोई दर्शन शास्त्र नहीं है यह शत प्रतिशत अनुभूतियों पर आधारित है.

अब जब अनुभूतियों की बात करते हैं तो एक साधक साधना करते समय तीन तरह की अनुभूतियों का अनुभव करता है –

१) साधना के प्रथम स्तर पर उसे अपनी इन्द्रियों का बोध होता है जिसे हम ऐसे समझते हैं की हाथ पैर दुःख रहे हैं.....आसन पर बैठा नहीं जाता.

२) दूसरे स्तर पर हमें उस दूसरे की अनुभूति होती है जिसे हम सिद्ध कर रहे होते हैं या जिसका आवाहन किया जा रहा होता है.

३) अंतिम अनुभूति होती है उस अलौकिक, अखंड परम सत्ता की जिसे हम समाधि की अवस्था कहते हैं.

पर यहाँ हम बात कर रहे हैं प्रेत सिद्धि की तो वो दूसरे स्तर की अनुभूति है. यदि आप सब को याद होगा तो पिछले लेख में हमने पढ़ा था की प्रेत जिस लोक में रहते हैं उसे वासना लोक कहते हैं और वासना जितनी गहन होगी उतना ही अधिक समय लगेगा आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त हो के सूक्ष्म योनि प्राप्त करने में और साथ ही साथ हमने यह भी समझा था की इन प्रेतों और पिशाचों का भू लोक पर आने वाला मार्ग महावासना पथ कहलाता है किसका महादिव्योध मार्ग से एकीकरण पृथ्वी के केन्द्र में होता है.......

पर हमने तब यह तथ्य नहीं समझा था की पृथ्वी के केन्द्र में ही यह दोनों मार्ग क्यों मिलते हैं कहीं और क्यों नहीं तो इसका एक सीधा सरल उत्तर यह है की भू के गर्भ में अर्थात उसके केन्द्र में ऊर्जा का घ्न्तत्व सबसे अधिक मात्रा में होता है या यूँ कहें की केन्द्र में कहीं ओर की तुलना में गुरुत्वाकर्षण की क्रिया सबसे ज्यादा होती है और इसी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण ही प्रेत योनियाँ भू लोक की तरफ खींची चली आती हैं.

इस प्रयोग के विधान को समझने से पहले या ये प्रयोग करने से पहले आपको दो अति महत्वपूर्ण बातों को अपने ज़हन में रखना होगा –

१) यह साधना प्रेत प्रत्यक्षीकरण साधना है तो हम ये भी जानते हैं की यदि आपने उसे प्रत्यक्ष करके सिद्ध कर लिया तो वो आपके द्वारा दिए गए हर निर्देश का पालन करेगा किन्तु उससे यह सब करवाने के लिए आपको अपने संकल्प के प्रति दृढ़ता रखनी पड़ेगी अर्थात आपको पूरे मन, वचन और क्रम से ये साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि जहाँ आप कमजोर पड़े आपकी साधना उसी एक क्षण विशेष पर खत्म हो जायेगी......

और हाँ एक बात और अब चूंकी ये योनियाँ मंत्राकर्षण की वजह से आपकी तरफ आकर्षित होती है तो यथा संभव कोशिश करें की यदि आपने आसन सिद्ध किया हुआ है तो आप उसी आसन पर बैठ कर इस प्रयोग को करें... क्योंकि वो आसन भू के गुरुत्व बल से आपका सम्पर्क तोड़ देता है.

२) हम में से बहुत कम लोग यह बात जानते है की दिन के २४ घंटों में एक क्षण ऐसा भी होता है जब हमारी देह मृत्यु का आभास करती है अर्थात यह क्षण ऐसा होता है जब हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है और ह्रदय की गति रुक जाती है....

रोज मरा की दिनचर्या में यह पल कौन सा होता है और कब आता है यह तो बहुत आगे का विधान है पर इस प्रयोग को करते समय यह पल तब आएगा जब आप साधना सम्पूर्णता की कगार पर होंगे तो आपको उस समय खुद के डर पर नियंत्रण करते हुए उस मूक संकेत को समझना है......वो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है उसके अस्तित्व को पहचानते हुए उसकी मूल पद ध्वनि को सुनना है.

विधान –

मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है.
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा.

वस्त्र व आसन का रंग काला होगा.

दिशा दक्षिण होगी.

वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है.

नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें..

दीपक सरसों के तेल का होगा.

बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा.

रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ.

 गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें. रक्षा विधान हेतु कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें.

अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें.

और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है.उस प्लेट के सामने रख दें.

अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से ५ माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग ३ घंटे लग सकते हैं.

मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.

कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है.

दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों.किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें.

क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा.

जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है.

जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है,और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा.

 ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा.जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें.

 कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें.

मंत्र:-

इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया.पितर की शक्ति,काली को गण,कारज करे सरल,धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर,दिखा अपना रूप,शत्रु डरें कापें थर थर,कारज मोरो कर रे काली को गण,जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की.काली की आन.

मुझे आशा है की आप इस अहानिकर प्रयोग के द्वारा लाभ और हितकर कारों को सफलता देंगे. भय को त्याग कर तीव्रता को आश्रय दें

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Wednesday, January 11, 2017

वीर बेताल साधना







यह साधना रात्रि कालीन है स्थान एकांत होना चाहिए ! मंगलबार को यह साधना संपन की जा सकती है ! घर के अतिरिक्त इसे किसी प्राचीन एवं एकांत शिव मंदिर मे या तलब के किनारे निर्जन तट पर की जा सकती है !
पहनने के बस्त्र आसन और सामने विछाने के आसन सभी गहरे काले रंग के होने चाहिए ! साधना के बीच मे उठना माना है !


इसके लिए वीर बेताल यन्त्र और वीर बेताल माला का होना जरूरी है !

यन्त्र को साधक अपने सामने बिछे काले बस्त्र पर किसी ताम्र पात्र मे रख कर स्नान कराये और फिर पोछ कर पुनः उसी पात्र मे स्थापित कर दे !

सिन्दूर और चावल से पूजन करे और निम्न ध्यान उच्चारित करें

!! फुं फुं फुल्लार शब्दो वसति फणिर्जायते यस्य कण्ठे
डिम डिम डिन्नाति डिन्नम  डमरू यस्य पाणों प्रकम्पम!
तक तक तन्दाती तन्दात  धीर्गति धीर्गति व्योमवार्मि
सकल भय हरो भैरवो सः न पायात !!

इसके बाद माला से 31 माला मंत्र जप करें यह  21  दिन की साधना है !

!! ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं वीर सिद्धिम दर्शय दर्शय फट !!


साधना के बाद सामग्री नदी मे या शिव मंदिर मे विसर्जित कर दें

साधना का काल और स्थान बदलना नहीं चाहिए



राजगुरु जी

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Tuesday, January 10, 2017

सिद्ध वशीकरण काजल

सबसे पहले आप ये जान लें कि वशीकरण का अर्थ होता है दूसरे व्यक्ति को अपने मनोनुकूल बनाना यानि ऐसा इंसान जिस पर वशीकरण का प्रयोग किया जाता है, उसे आपकी हर बात को मानना ही होता है भले ही ऐसा करने से उसका नुकसान क्यों न हो रहा हो।

किंतु ध्यान रहे इस विधि का दुरुपयोग के लिए प्रयोग निषिद्ध है और यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे इसका दुष्परिणाम भुगतना ही होता है।

काजल वशीकरण को सम्मोहन के नाम से भी जाना जाता है जिसका आसान मतलब होता है किसी को अपने कंट्रोल में करना अर्थात किसी के दिमाग पे अधिकार करना।

इस साधना में अक्सर लोग काले जादू का इस्तेमाल करते हैं जो की जीवन के लिए घातक सिद्ध होता है इसलिए सबसे ज्यादा इस बात का ध्यान रखें कि गलत काम ना करें काला जादू एक तोप की तरह है जो आगे गोला फैंकता है तो पीछे भी धक्का देता है इसलिए काले जादू को बहुत सोचसमझ कर ही इस्तमाल करें

इस साधना के दौरान नकारात्मक न सोचे और ना ही ऐसे लोगो के साथ रहे जो नकारात्मक सोचते हैं।सही मार्गदर्शन में साधना करने से सफलता अवश्य मिलती
है.

यह एक गुप्त और चमत्कारी विधि है इसलिए हम इसे यहाँ नहीं देंगे इस विधि का प्रयोग करने से वशीकरण की शक्ति अवश्य प्राप्त हो जाती है

इसलिए जिसको यह विधि चाहिए   इस नवरात्रि  या  इस दीपावली पर हम यह महान काजल स्वयं बनायेंगे वह हमसे फोन करके विधि या सामग्री पूछ ले यहाँ मैसेज करके लाभ नहीं होगा फोन करके पूछो

यह काजल आकर्षण शक्ति और सम्मोहन शक्ति बढ़ाता है यह जगत मोहन के लिए है इसमें किसी एक व्यक्ति का वशीकरण नहीं होता यह काजल ३० बार प्रयोग किया जा सकता है

राजगुरु जी

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Friday, January 6, 2017

विपरीत प्रत्यंगिरा मोहनी प्रयोग

मंत्र :

ऊँ हूँ मोहिनी स्प्रे स्प्रे मम ( शत्रुन ) मोहय मोहय फें हूँ फट्

 स्वाहा

विधि :

मंगलवार के दिन कम से कम 10 हजार जप कर लें

 "शत्रुन " की

जगह साध्य का नाम और स्मरण करें

हवन :

हवन के लिए देशी गाय के दुध में पकायी हुई खीर में शहद

मिलाकर 108 बार उपरोक्त मंत्र से हवन करने से साध्य व्यक्ति का

आप से आकर्षण हो जाता है

मेरा अनुभव किया हुआ प्रयोग है

राजगुरु जी

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Wednesday, January 4, 2017

तांत्रिक भैरव मंदिर

देश का दुर्लभ तांत्रिक मंदिर बाजनामठ

बाजनामठ देश का दुर्लभ तांत्रिक मंदिर है। सिद्ध तांत्रिकों के मतानुसार यह ऐसा तांत्रिक मंदिर है जिसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है। ऐसे मंदिर पूरे देश में कुल तीन हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दो काशी और महोबा में हैं।

बाजनामठ का निर्माण 1520 ईस्वी में राजा संग्राम शाह द्वारा बटुक भैरव मंदिर के नाम से कराया गया था। इस मठ के गुंबद से त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से शक्ति जागृत होती है।

कुछ कथानकों के अनुसार यह मठ ईसा पूर्व का स्थापित माना जाता है। आद्य शंकराचार्य के भ्रमण के समय उस युग के प्रचण्ड तांत्रिक अघोरी भैरवनंद का नाम अलौकिक सिद्धि प्राप्त तांत्रिक योगी के रूप में मिलता है।

तंत्र शास्त्र के अनुसार भैरव को जागृत करने के लिए उनका आह्वान तथा स्थापना नौ मुण्डों के आसन पर ही की जाती है। जिसमें सिंह, श्वान, शूकर, भैंस और चार मानव-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इस प्रकार नौ प्राणियों की बली चढ़ाई जाती है। किंतु भैरवनंद के लिए दो बलि शेष रह गई थी।

यह माना जाता है कि बाजनामठ का जीर्णोद्धार सोलहवीं सदी में गोंड राजा संग्राम शाह के शासनकाल में हुआ, किंतु इसकी स्थापना ईसा पूर्व की है।

बाजनामठ को लेकर एक जनश्रुति यह है कि एक तांत्रिक ने राजा संग्राम शाह की बलि चढ़ाने के लिए उन्हें बाजनामठ ले जाकर पूजा विधान किया। राजा से भैरव मूर्ति की परिक्रमा कर साष्टांग प्रणाम करने को कहा, राजा को संदेह हुआ और उन्होंने तांत्रिक से कहा कि वह पहले प्रणाम का तरीका बताए।

तांत्रिक ने जैसे ही साष्टांग का आसन किया, राजा ने तुरंत उसका सिर काटकर बलि चढ़ा दी। मार्गशीष महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है। यह दिन तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण होता है। बाजनामठ की एक खशसियत यह है कि यहाँ पहले सिर्फ शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ होती थी, लेकिन अब हर दिन यहाँ भारी भीड़ होती है। यह मंदिर नागपुर रोड पर मेडिकल कॉलेज के आगे संग्राम सागर के निकट स्थि‍त है।

राजगुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...