Monday, November 30, 2015

भैरवी साधना










शक्ति उपासकों का जो दुसरा वाम मार्गी मत था, उसमें शराब को जगह दी गई। उसके बाद बलि प्रथा आई और माँस का सेवन होने लगा। इसी प्रकार इसके भी दो हिस्से हो गये, जो शराब और माँस का सेवन करते थे, उन्हे साधारण-तान्त्रिक कहा जाने लगा। लेकिन जिन्होनें माँस और मदिरा के साथ-साथ मीन(मछली), मुद्रा(विशेष क्रियाँऐं), मैथुन(स्त्री का संग) आदि पाँच मकारों का सेवन करने वालों को सिद्ध-तान्त्रिक कहाँ जाने लगा। आम व्यक्ति इन सिद्ध-तान्त्रिकों से डरने लगा। किन्तु आरम्भ में चाहें वह साधारण-तान्त्रिक हो या सिद्ध-तान्त्रिक, दोनों ही अपनी-अपनी साधनाओं के द्वारा उस ब्रह्म को पाने की कोशिश करते थे। जहाँ आरम्भ में पाँच मकारों के द्वार ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बनाई जाती थी और उस ऊर्जा को कुन्डलिनी जागरण में प्रयोग किया जाता था। ताकि कुन्डलिनी जागरण करके सहस्त्र-दल का भेदन किया जा सके और दसवें द्वार को खोल कर सृष्टि के रहस्यों को समझा जा सके। किन्तु धीरे-धीरे पाँच मकारों का दुर-उपयोग होने लगा और यह पाँच मकार सिर्फ स्वार्थ सिद्धि, नशा और काम-वासना की पूर्ति के साधन मात्र ही रह गये।
कोई माने या न माने लेकिन यदि काम-भाव का सही इस्तेमाल किया जा सके तो इससे ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है।
इसी वक्त एक और मत सामने आया जिसमें की भैरवी-साधना या भैरवी-चक्र को प्राथमिकता दी गई। इस मत के साधक वैसे तो पाँचों मकारों को मानते थे, किन्तु उनका मुख्य ध्येय काम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति था।
भैरवी साधना में कई भेद है– जहाँ प्रथम रूप में स्त्री और पुरूष निर्वस्त्र हो कर एक दूसरे से तीन फुट की दूरी पर आमने सामने बैठ कर, एक दूसरे की आँखों में देखते हुऐ शक्ति मंत्रों का जाप करते हैं। लगातार ऐसा करते रहने से साधक के अन्दर का काम-भाव उर्ध्व-मुखी हो कर उर्जा के रूप में सहस्त्र-दल का भेदन करता है। वहीं अन्तिम चरण में स्त्री और पुरूष सम्भोग करते हुऐ, अपने आपको काबू में रखते हैं। दोनों ही शक्ति मंत्रों का जाप करते है और कोशिश करते है की जितना भी हो सके, उतनी ही देर से स्त्री या पुरूष का स्खलन हो। इसके साथ ही इस साधना को करवाने वाला योग्य गुरू अपने शिष्यों को यह निर्देश देता हैं, कि जब भी स्खलन हो तो दोनों का एक साथ हो। इससे यह होता है, कि जैसे बिजली के दो तारों को जिसमें एक गर्म(फेस) और दूसरा ठंडा(न्यूट्रल) हो, यदि इन दोनों को आपस में टकरा दिया जाये तो चिंगारी(स्पार्किन्ग) निकलेगी, उसी प्रकार अगर स्त्री और पुरूष दोनों का स्खलन एक साथ होने पर अत्यधिक उर्जा उत्पन्न होगी जिससे की एक ही झटके में सहस्त्र-दल का भेदन हो जायेगा। सहस्त्र-दल का भेदन करने के लिऐ आज तक जितने भी प्रयोग हुऐ है, उन सभी प्रयोगों में यह प्रयोग सब से अनूठा है। ऐसे साधक को साधना के तुरन्त बाद दिव्य ध्वनियॉ एवं ब्रह्माण्ड में गूंज रहे दिव्य मंत्र सुनाई पड़ते है। साधक को दिव्य प्रकाश दिखाई देता है। साधक के मन में कई महीनों तक दुबारा काम-भाव कि उत्पत्ति नहीं होती।
प्रत्येक साधना में कोई न कोई कठिनाई अवश्य होती है, उसी प्रकार इस साधना में जो सबसे बड़ी कठिनाई है, वह यह है कि अपने आप को काबू में रखना एवं साधक और साधिका का एक साथ स्खलन होना। किन्तु धीरे-धीरे भैरवी-साधना भी मात्र काम-वासना का उपभोग बन कर रह गई। धीरे-धीरे साधक सहस्त्र-दल भेदन को भूल गये और उस परमपिता-परमात्मा को भी जिसने कि यह सम्पूर्ण सृष्टि बनाई है, भुलने लगे। भैरवी-साधना मात्र व्याभिचार-साधना बन कर रह गई। इसका मूल कारण सही गुरू एवं सही दीक्षा तथा पूर्ण मंत्र का न होना भी है। जब तक साधक के पास सही मंत्र एवं दीक्षा नहीं होगी तब तक साधक चाहे कितना भी अभ्यास करे भैरवी-साधना में सफलता असम्भव है। क्योंकि भैरवी-तंत्र के अनुसार भैरवी ही गुरू है और गुरू ही भैरवी का रूप है।

राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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