Tuesday, October 24, 2023

महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि


 



।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।।


इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पहले सुरक्षा घेरे से बाहर न आये । इस मंत्र को प्रतिदिन 11 माला जाप करे । माला कोई भी ले सकते है ।

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चौमुखा तेल का दीपक जलाए और अंत में 11 आहुतियाँ बकरे की कलेजी की और गुग्गल की अग्नि में दे । अग्नि गोबर के कंडे की होनी चाहिए । यह क्रिया आपको 41 दिन तक करनी है । इस साधना में भैरव जी प्रत्यक्ष दर्शन देते है । साधना के दौरान ब्रह्मचारी रहे, ब्रह्मचर्य खंडित हो जाने पर व्यक्ति साधना का फल कम हो जाता है ।


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।। प्रयोग विधि ।।


जब भी कोई कार्य करवाना हो तो इस मंत्र की 1 माला जप करे और अग्नि में 11 आहुतियाँ देकर भैरव जी से प्रार्थना करे , कार्य सिद्ध हो जायेगा अथवा कपूर का काजल अपनी हथेली पर लगाये और हथेली को देखते हुए मंत्र का जाप करे , भैरव जी हथेली में दर्शन देंगे और जो भी कार्य कहा जायेगा , वह कर देंगे ।


।। मंत्र ।।


।। काला भैरो काला बाण

खप्पर खाए चढ़े समान ,

जिन्दे को मारे , मुए की खबर ले आये

कढ कलेजा मुख विच पाए

चोटी मार तली ते आये

ता काला भैरो कहलाये ।।


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


पेटियम नम्बर ==9958417249


गूगल पे नम्बर ==== 9958417249


फोन पे =======6306762688


 चेतावनी -


सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।


विशेष -


किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें


महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》


तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान


महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट


(रजि.)


किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :


मोबाइल नं. : - 09958417249


                     


व्हाट्सप्प न०;- 09958417249

Saturday, October 21, 2023

सूर्य ग्रह अगर किसी का अच्छा होता है तो ऐसे जातक राजा समान जिंदगी जीते हैं किंतु


 


सूर्य ग्रह अगर किसी का अच्छा होता है तो ऐसे जातक राजा समान जिंदगी जीते हैं किंतु


सूर्य कमजोर जातक हर जगह अपमान पाते है और मान सम्मान में कमी होती हैं


सूर्य कमजोर की पहचान


https://t.me/+dchYOwUCAL5mZjM1


1.ऐसे जातक के पेट में गैस संबंधी परेशानी बनी रहेगी


2. ऐसे जातक की पढ़ाई में अवरोध होगा और सरकारी कामकाज में कार्य पूरे नही होंगे


3.पिता से नही बनेगी और पिता का अपमान करेंगे


4. ऐसे जातक की आंखे हल्की सी पीली हो सकती है हफ्ते में 2 बार


5.मान सम्मान प्राप्त नही होता है चाहे कितनी ही। तारिक्की कर ले


https://youtube.com/channel/UCWF8VKQJ_vL4K0-WKrGk-BA


नुकसान


1.राहु सूर्य साथ हो तो जातक 

अच्छे पद पर होने के बावजूद बेइज्जत होता है


2.सूर्य केतु साथ हो तो ऐसे जातक को आत्म सम्मान पर बहुत ठेस पहुंचती हैं|


 3.सूर्य अगर अगर पंचम भाव में शनि के साथ होता है तो ऐसे जातक अपने भविष्य खुद तबाह कर लेते है


4.सूर्य बुध केतु के साथ युति कर छठे आठवें या द्वादश भाव में बैठता है तो जातक की सर्जरी हो सकती है


5.अगर सूर्य लग्न में केतु हो तो ऐसे जातक को हृदय संबधी रोग काफी हद तक हो सकता है


उपाय 


1.सूर्य के लिए तांबे का दान करना चाहिए 


2.सूर्योदय के साथ इस मंत्र का जप करें 


" ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः "


 उसके बाद 21 बार आदित्य स्त्रोत के पाठ करे


3. गाय को गेहूं की रोटी खिलाएं उसमे थोड़ा सा गुड़ भी रख दे


4.सूर्य सहस्त्रनाम के जप भी कर सकते हैं


5.सूर्यदेव को कुमकुम और गुड़ मिलाकर अर्ध दे


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


दक्षिणा  -  501  मात्र .


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महायोगी  राजगुरु जी  《  महायोगी अघोराचार्य   》


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Saturday, October 7, 2023

सूर्य ग्रह अगर किसी का अच्छा होता है तो ऐसे जातक राजा समान जिंदगी जीते हैं किंतु


 



सूर्य ग्रह अगर किसी का अच्छा होता है तो ऐसे जातक राजा समान जिंदगी जीते हैं किंतु


सूर्य कमजोर जातक हर जगह अपमान पाते है और मान सम्मान में कमी होती हैं


सूर्य कमजोर की पहचान


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1.ऐसे जातक के पेट में गैस संबंधी परेशानी बनी रहेगी


2. ऐसे जातक की पढ़ाई में अवरोध होगा और सरकारी कामकाज में कार्य पूरे नही होंगे


3.पिता से नही बनेगी और पिता का अपमान करेंगे


4. ऐसे जातक की आंखे हल्की सी पीली हो सकती है हफ्ते में 2 बार


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नुकसान


1.राहु सूर्य साथ हो तो जातक 

अच्छे पद पर होने के बावजूद बेइज्जत होता है


2.सूर्य केतु साथ हो तो ऐसे जातक को आत्म सम्मान पर बहुत ठेस पहुंचती हैं|


 3.सूर्य अगर अगर पंचम भाव में शनि के साथ होता है तो ऐसे जातक अपने भविष्य खुद तबाह कर लेते है


4.सूर्य बुध केतु के साथ युति कर छठे आठवें या द्वादश भाव में बैठता है तो जातक की सर्जरी हो सकती है


5.अगर सूर्य लग्न में केतु हो तो ऐसे जातक को हृदय संबधी रोग काफी हद तक हो सकता है


उपाय 


1.सूर्य के लिए तांबे का दान करना चाहिए 


2.सूर्योदय के साथ इस मंत्र का जप करें 


" ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः "


 उसके बाद 21 बार आदित्य स्त्रोत के पाठ करे


3. गाय को गेहूं की रोटी खिलाएं उसमे थोड़ा सा गुड़ भी रख दे


4.सूर्य सहस्त्रनाम के जप भी कर सकते हैं


5.सूर्यदेव को कुमकुम और गुड़ मिलाकर अर्ध दे


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Thursday, September 28, 2023

स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना


 



स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना 


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र यक्षिणी को प्रकट करने की एक दिव्य साधना है। यक्षिणी स्वभाव से बहुत सुंदर, सौम्य और सरल है। वह सोलह वर्ष की युवती के रूप में सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित रहती है। वह सदैव युवा है.


स्वर्णप्रभा बस अपने शरीर के पास सुनहरे रंग की आभा बिखेरती है। वह अद्भुत और आकर्षक दिखती हैं।


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उसके शरीर से एक अनोखी गंध आती रहती है, जो किसी भी पुरुष को सम्मोहित करने के लिए काफी है। वह साधक के इच्छित कार्य को पूर्ण करने के लिए पूर्णतया समर्पित रहती है. यक्षिणी साधक को धन, ऐश्वर्य और सुख प्रदान करती रहती है।


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'यक्ष' शब्द एक ऐसी विशेष जाति को दर्शाता है और यह जाति स्वयं धन, ऐश्वर्य, संप्रभुता और समृद्धि की स्वामी है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर हैं, जिनकी दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी के साथ पूजा की जाती है। कुबेर 'यक्ष' जाति के हैं और रावण ने भी कुबेर साधना करके ऐश्वर्य प्राप्त किया था।


यक्षिणी साधना लक्ष्मी साधना से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यक्षिणी साधना से हम वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं, जो हमारे जीवन का उद्देश्य है। यक्षिणी साधना को निम्नलिखित पाँच कारणों से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है:


1. यह साधना सरल है और इसमें अधिक जटिल अनुष्ठान नहीं हैं।


2. यह साधना न्यूनतम समय की है और इसमें साधक को अधिक समय भी बर्बाद नहीं करना पड़ता है।


3. यह साधना अत्यंत सफल और तुरंत फल देने वाली मानी जाती है।


4. यक्षिणी साधना से साधक को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती, बल्कि लाभ ही होता है।


5. यक्षिणी साधना पूरी करने के बाद यक्षिणी जीवन भर सौम्य रूप में साधक के वश में रहती है और उसके इच्छित कार्य को पूरा करती रहती है।


यक्षिणी साधना के लाभ


 साधना पूरी होने के बाद, यक्षिणी शारीरिक रूप से सुंदर-फिट कपड़ों में साधक से मिलती है और उसकी ही बनकर रह जाती है।


ऐसी यक्षिणी जीवन भर साधक की आज्ञा का पालन करती रहती है।


आदेश मिलने पर साधक जो भी चाहता है, यक्षिणी उसे प्रदान करती रहती है। यह धन, ऐश्वर्य, वस्त्र, सोना, शारीरिक सुख और मानसिक संतुष्टि आदि प्रदान करता है।


ऐसी यक्षिणी सलाहकार के रूप में साधक को निरंतर सलाह और मार्गदर्शन देती है। मुसीबत के समय वह जी-जान से सेवा करती है।


यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक को शारीरिक एवं मानसिक रूप से संतुष्टि प्रदान करती है।


ऐसी यक्षिणी साधक को प्रत्यक्ष दिखाई देती है और कभी धोखा नहीं देती।


 किसी भी प्रकार की साधना या पूजा करने वाला साधक ऐसी साधना कर सकता है।


यक्षिणी साधना जीवन में धन-संपत्ति प्रदान करती रहती है। ऐसे साधक को बुढ़ापा नहीं घेरता। यक्षिणी के प्रभाव से साधक स्वयं निरंतर युवा बना रहता है।


यह सर्वोत्तम साधना है क्योंकि योगियों, यति और संन्यासियों ने भी इसमें सफलता प्राप्त की है और जंगल और पहाड़ों में भी सौभाग्य बनाए रखा है। ऐसी साधना एक गृहस्थ भी कर सकता है। इसे कोई भी पुरुष या महिला कर सकता है.


यदि किसी कारणवश यह साधना विफल भी हो जाए तो भी साधक को कोई हानि नहीं होती है। कई साधकों के लिए यह साधना पहली बार में ही सिद्ध हो जाती है।


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना मुहूर्त


यदि यह साधना दीपावली के आसपास की जाए तो अधिक उचित है। इस साधना को करने का सबसे शुभ समय दीपावली के बाद दूसरा दिन होता है।


साधना सामग्री


 जल का लोटा, कुमकुम, केसर और चावल,

यक्षिणी माला जिसके माध्यम से मंत्र का जाप करना होता है।


पहनने को पीला आसन और पीली धोती;

दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका ।

रात्रि के दस बजे के बाद साधक को पीला आसन बिछाकर उस पर शांत मन से बैठना चाहिए।


उपर्युक्त सामग्रियों के अलावा, कुछ गुलाब भी लें। फूलों की एक माला भी रखें, ताकि जब यक्षिणी दिखाई दे तो माला उसे पहना दी जाए और उससे यह वचन लें कि वह जीवन भर आपके वश में रहेगी और आप जो आदेश देंगे वही करेगी।


साधक को दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका को गले या दाहिनी भुजा पर धारण करना चाहिए। एक स्टील की थाली पर केसर से स्वस्तिक और श्री लिखें। साधक को अपने शरीर पर कोई इत्र लगाना चाहिए।


फूल और दूध से बनी मिठाई समर्पित करें. पास में तेल का दीपक और अगरबत्ती जला लें। साधक को स्वयं उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए और उसी रात्रि को माला से 21 माला मंत्र का जाप पूरा करना चाहिए। इस मंत्र साधना को 21 दिनों तक करें।


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र


ॐ ऐं श्रीं ह्रीं दिव्यांगना आगच सिद्धिं देहि देहि फट्


स्वर्णप्रभा यक्षिणी साधना सिद्धि मंत्र


ॐ ऐं श्रीं ह्रीं विलक्षणना आगच्छ सिद्धिं देहि देहि फट |


मंत्र जाप के बाद एक अत्यंत मधुर सुगंध वाली षोडशी दिव्यांगना यक्षिणी पास आती है। जब यक्षिणी के प्रत्यक्ष दर्शन हो या ऐसा अनुभव हो कि कोई स्त्री बैठी है तो साधक को माला उसके गले में डाल देनी चाहिए और वचन लेना चाहिए कि दिव्यांगना यक्षिणी उसके वश में रहेगी तथा वह जो भी आदेश देगी, उसका पालन करेगी। उसके शेष जीवन के लिए.


इस साधना के पूरा होने के बाद गुटिका को अपनी बांह पर बांध लें। ऐसा करने से साधक को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।


आवश्यक साधना सामग्री :


यक्षिणी माला


दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका ।


साधना समाग्री दक्षिणा === 2100


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चौसठ महा कृत्या मन्त्र साधना


 


चौसठ महा कृत्या मन्त्र साधना


यह साधना अत्यंत गोपनीय,दुर्लभ और प्राचीन है।यह कृत्या शरीर से उत्पन्न होती है।यह वशीकरण ,मोहन,मारण,उच्चाटन का प्रबल अस्त्र है।जब भगवान् शिव को क्रोध आया और उनके सैनिक परास्त होकर आ गए थे तब उन्होंने अपने शरीर से कृत्या का निर्माण किया था और यज्ञ का नाश किया था,


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बड़े बड़े ऋषि मुनियो के तंत्र मन्त्र भी कृत्या शक्ति के आगे काम नही कर पाये अर्थात फैल हो गए।कृत्या मानव शरीर से उत्पन्न एक देवी शक्ति है।जिस तरह मनुष्य अपने शरीर से मन्त्र साधना से अपने तीन हमजाद सिद्धि करता है उसी तरह कृत्या सिद्ध हो जाती है। 


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मन्त्र की कृत्या तंत्र की कृत्या से 100 गुना ज्यादा तीव्र कार्य करती है।कुछ ही सेकंडो में मात्र। प्राचीन काल में चौसठ महा कृत्या गुरुदेव शुक्राचार्य जी को सिद्ध थी।यह चौसठ कृत्या तीनो लोको के कार्य संपन्न करती है।


अगर साधक अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ आकाश में करके चौसठ कृत्या का मन्त्र जप कर कार्य कहे तो स्वर्ग में हा हा कार हो जाय, पृथ्वी पर करे तो मानव में हलचल हो जाये,भूमि की तरफ देखकर करे तो पाताल लोक में।


 अर्थात चौसठ कृत्या साधक किसी भी देव देवी ,अप्सराआदि को वशीभूत कर सकता है।घर बैठे उनको दण्डित कर सकता है,इतर योनि को मारण कर सकता है।इसी शक्ति मन्त्र के बल पर रावण ने लंका में बैठे हुए ही स्वर्गलोक में नृत्य करने वाली अप्सरा का शक्ति उच्चाटन किया था जिससे वह बेहोश होकर गिर गयी थी।


 जब चौसठ कृत्या देवी आती है तब मारण के लिये तो भूत प्रेत,ब्रह्म राक्षस ,पिशाच,जिन,कर्णपिशाचिनी आदि शक्तियाँ भाग जाती है नही तो कृत्या कालग्रास बना देती है सबको और एक बबूले अर्थात बवंडर में लपेटकर सबको अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं। 


कृत्या सिद्ध होने पर साधक मन्त्र से जल पड़कर रोगी को पिलाय तो रोगी रोगमुक्त हो जाता है।कोई तंत्र साधक को हानि नही पहुंचा सकता है।साधक मन में असीम बल धारण कर लेता है।चार कर्म सिध्द हो जाते हैं।


वर्तमान में 26 योग्य साधको को चौसठ कृत्या प्रदान करायी गयी है।जो सफलता पूर्वक मानव भलाई के कार्य कर रहे हैं। कृत्या एक सात्विक साधना है।मांस मदिरा का सेवन वर्जित है। कृत्या साधना गुरुकृपा ,शिवकृपा से ही प्राप्त होती है।कृत्या साधना का पूर्ण विधान यहाँ नही दिया गया है,केवल साधको के ज्ञानार्थ है। 


चौसठ कृत्या सिद्धि किसी भी मंगलवार या अमावस्या से शुरू की जा सकती है।काले वस्त्र धारण करके तेल का दिया जलाकर सिद्ध की जाती है,इसमें सभी कर्म बांये हाथ से करने होते है जैसे दिशाबन्धन,देह रक्षा आदि। 


चौसठ कृत्या सिद्ध साधक सेकड़ो अधर्मी तांत्रिको पर भारी पड़ जाता है।(यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई मारण ,बन्धन,तांत्रिक परयोग का शिकार आदमी हमारे पास आता है और इलाज के लिये बोलता है,तब ऑनलाइन माध्यम से उस का फ़ोटो ,माता का नाम पिता का नाम,पूरा पता लिया जाता है,,


तब पीड़ित को आत्मिक रूप से संपर्क करके यदि उसके ऊपर तांत्रिक प्रयोग होता है तो उसको उच्चाटन कर दिया जाता है।किसी भी तरह की आत्मा होती है तो उसका मारण या मुक्ति कर दिया जाता है 


या कोई चोकी लाट देवी या देवता की होती है तो उसको वापस् उठा कर उसके स्थान पर भेज दिया जाता है जिससे रोगी के प्राण बच जाते है।अपना शेष जीवन व्यतीत करता है ।उस तांत्रिक को शक्तिहीन कर दिया जाता है बन्धन से ,,


यदि वो अपने गुरुओ के पास जाता है और उनके गुरु भी उसकी गलती नही मानते ,उसकी हेल्प करते है तो उनको भी बंधन कर दिया जाता है।) 


मन्त्र 


ॐ ब्रह्मसूत्रसमस्त मम देह आवद्ध आवद्ध वज्र देह फट् ॐ ऐम् क्लीम् ह्रीम् क्रीम ॐ फट ॐ चौसठ शिवकृत्या प्रयोगाय दस दिशा बंधाये क्रीम क्रोम फट् ॐ रम् देहत्व रक्षा य फट्। 


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Monday, September 25, 2023

सर्व संकट नाशक मंत्र..


 



सर्व संकट नाशक मंत्र..


ॐ ह्रीं बगुला मुखी, सर्व दुष्टानाम वाचं मुखंपदम् स्तम्भय, जिहवाम् कीलय, कीलय बुद्धि विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा।


 (साधक का नाम अवश्य अंत में जोड़ा जाये और जय बगुला मुखी भी अन्त में कहा जाये)


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समस्या- किसी भी प्रकार की समस्या हो, चाहे सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, राजनैतिक व झगड़ा-फसाद, नौकरी का न मिलना या प्रमोशन पाना, मुकद्दमे में विजय, परीक्षा में सफलता, विवाह शादी न होना या पति-पत्नी का आपस न निभ पाना, फिल्म या किसी प्रकार व्यापार, क्रिया कलाप, बीमारी शत्रु रक्षा सभी के लिये अचूक राम बाण है यह मंत्र ।


विधि विधान-


 बगुलामुखी देवी या किसी भी देवी का उपलब्ध चित्र सामने रखकर, फूलों से, धूप दीप जलाकर, प्रतिमा या चित्र के सामने अपना मनोरथ स्पष्ट प्रकट करे और प्रतिदिन 31 से 51 बार मंत्र जप करें। जितनी शुद्धता व मन में पवित्रता आती जायेगी, उतनी ही शीघ्रता से बगुलामुखी साधक की मनोकामना पूर्ण करती है।


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


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Tuesday, September 12, 2023

इन्द्राक्षी साधना


 



इन्द्राक्षी साधना 


माँ इन्द्राक्षी की साधना सम्पूर्ण वैभव देने वाली तथा रोगों का नाश करने वाली मानी जाती है।साधक के जीवन में आर्थिक अनुकूलता आने लगती है तथा समाज में उसे मान सम्मान की प्राप्ति होती है।


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इन्द्राक्षी साधना के बारे में ये भी कहा जाता है की जो साधक इसे पूर्ण निष्ठां तथा समर्पण के साथ करता है माँ उसे इंद्र की ही तरह सम्पूर्ण वैभव तथा आरोग्यता प्रदान कर देती है।साधक के समस्त आतंरिक तथा बाहरी भय का नाश हो जाता है।तथा वो साधनाओ में सफलता की और बढता है


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 विशेषकर लक्ष्मी साधना में।माँ इन्द्राक्षी की साधना से सम्बंधित कई प्रयोग है अभी केवल एक साधना यहाँ दे रहा हु।आशा करता हु आप इसे संपन्न कर माँ की कृपा के पात्र बनेंगे।


विधि:


यह साधना किसी भी शुक्रवार से आरम्भ की जा सकती है।साधक समय स्वयं निर्धारित करे।पर प्रतिदिन समय एक ही हो।और ऐसे समय का चुनाव करे जब आप शांति के साथ साधना कर सके।आसन तथा वस्त्र आपके पीले हो,तथा मुख उत्तर या पूर्व की और हो।


अब अपने सामने एक बजोट रखे और उस पर एक पिला वस्त्र बिछा दे।अब एक कागज़ पर या भोजपत्र पर इन्द्राक्षी यन्त्र बनाये।इसमें अष्टगंध की स्याही का उपयोग होगा तथा कलम होगी दडिम की।यन्त्र बनाने के बाद उसे स्थापित कर उसका पूजन करे।


शुद्ध घी का दीपक हो तथा भोग में खीर या पञ्च मेवा चड़ाए।एक कोई भी फल अर्पण करे।तथा माँ से सफलता की प्रार्थना करे।अब स्फटिक माला से,निम्न मंत्र की 51 माला करे।ये क्रम 10 दिन तक रखे।आखरी दिन घी तथा पञ्च मेवा मिलाकर कम से कम 1008 आहुति प्रदान करे


।इस तरह ये साधना संपन्न होती है।साधक चाहे तो सवा लाख मंत्रो को अनुष्ठान भी कर सकता है।साधन के बाद यन्त्र को पूजा घर में स्थापित करदे।प्रसाद स्वयं तथा परिवार वाले ग्रहण करे।कम से कम एक कन्या को भोजन कर दक्षिणा दे संतुष्ट करे।


आप स्वयं इस साधन का प्रभाव अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे।अगर इसके साथ की इन्द्राक्षी कवच का पाठ भी नित्य किया जाये तो परिणाम और अनुकूल होते है।


मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्षी नमः .


om shreem hreem kleem aim indrakshi namah


साधना समाग्री दक्षिणा === 1750


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