यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है. मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.
Friday, March 23, 2018
फीस पेटेम के माध्यम से पहले ली जायेगी.
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अगर किसी पर court case हो, नोकरी में Permotion रुकी हो, Transfer न हो रही हो, Job Politics हो, Savings से ज्यादा खर्चे हो,विदेश जाने में दिक्कत हो या घर में कलेश रहता हो तो इनके समाधान के लिए यह समय उपाय के लिए सबसे अच्छा समय है
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हम के पी के होररी नंम्बर के आधार पर हां ना या देरी का तत्काल उत्तर देगे और अधिक विश्लेष्ण करवा ना हो तो फीस पेटेम के माध्यम से पहले ली जायेगी.
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राजगुरु जी
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Thursday, March 22, 2018
सिद्ध योगिनी साधना
सिद्ध योगिनी साधना
तंत्र में सदा से योगिनीयो का अत्यंत महत्व रहा है.तंत्र अनुसार योगिनी आद्य शक्ति के सबसे निकट होती है.माँ योगिनियो को आदेश देती है और यही योगिनी शक्ति साधको के कार्य सिद्ध करती है.मात्र लोक में यही योगिनिया है जो माँ कि नित्य सेवा करती है.
योगिनी साधना से कई प्रकार कि सिद्धियाँ साधक को प्राप्त होती है.प्राचीन काल में जब तंत्र अपने चरम पर था तब योगिनी साधना अधिक कि जाती थी.परन्तु धीरे धीरे इनके साधको कि कमी होती गयी और आज ये साधनाये बहुत कम हो गयी है.
इसका मुख्य कारण है समाज में योगिनी साधना के प्रति अरुचि होना,तंत्र के नाम से ही भयभीत होना,तथा इसके जानकारो का अंतर्मुखी होना।इन्ही कारणो से योगिनी साधना लुप्त सी होती गयी.परन्तु आज भी इनकी साधनाओ के जानकारो कि कमी नहीं है.आवश्यकता है कि हम उन्हें खोजे और इस अद्भूत ज्ञान कि रक्षा करे.
मित्रो आज हम जिस योगिनी कि चर्चा कर रहे है वो है " सिद्ध योगिनी " कई स्थानो पर इन्हे सिद्धा योगिनी या सिद्धिदात्री योगिनी भी कहा गया है.ये सिद्दी देने वाली योगिनी है.
जिन साधको कि साधनाये सफल न होती हो,या पूर्ण सफलता न मिल रही हो.तो साधक को सिद्ध योगिनी कि साधना करनी चाहिए।इसके अलावा सिद्ध योगी कि साधना से साधक में सतत प्राण ऊर्जा बढ़ती जाती है.और साधना में सफलता के लिए प्राण ऊर्जा का अधिक महत्व होता है.
विशेषकर माँ शक्ति कि उपासना करने वाले साधको को तो सिद्ध योगिनी कि साधना करनी ही चाहिए,क्युकी योगिनी साधना के बाद भगवती कि कोई भी साधना कि जाये उसमे सफलता के अवसर बड़ जाते है.साथ ही इन योगिनी कि कृपा से साधक का गृहस्थ जीवन सुखमय हो जाता है.
जिन साधको के जीवन में अकारण निरंतर कष्ट आते रहते हो वे स्वतः इस साधना के करने से पलायन कर जाते है.आइये जानते है इस साधना कि विधि।
आप ये साधना किसी भी कृष्ण पक्ष कि अष्टमी से आरम्भ कर सकते है.इसके अलावा किसी भी नवमी या शुक्रवार कि रात्रि भी उत्तम है इस साधना के लिए.साधना का समय होगा रात्रि ११ के बाद का.आपके आसन तथा वस्त्र लाल होना आवश्यक है.
इस साधना में सभी वस्तु लाल होना आवश्यक है.अब आप उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये और भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.वस्त्र पर कुमकुम से रंजीत अक्षत से एक मैथुन चक्र का निर्माण करे.
इस चक्र के मध्य सिंदूर से रंजीत कर " दिव्याकर्षण गोलक " स्थापित करे जिनके पास ये उपलब्ध न हो वे सुपारी का प्रयोग करे.इसके बाद सर्व प्रथम गणपति तथा अपने द्गुरुदेव का पूजन करे.
इसके बाद गोलक या सुपारी को योगिनी स्वरुप मानकर उसका पूजन करे,कुमकुम,हल्दी,कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करे,लाल पुष्प अर्पित करे.
भोग में गुड का भोग अर्पित करे,साथ ही एक पात्र में अनार का रस अर्पित करे.तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.इसके बाद एक माला नवार्ण मंत्र कि करे.जाप में मूंगा माला का ही प्रयोग करना है या रुद्राक्ष माला ले.
नवार्ण मंत्र कि एक माला सम्पन करने के बाद,एक माला निम्न मंत्र कि करे,
ॐ रं रुद्राय सिद्धेश्वराय नमः
इसके बाद कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न लिखित मंत्र को एक एक करके पड़ते जाये और थोड़े थोड़े अक्षत गोलक पर अर्पित करते जाये।
ॐ ह्रीं सिद्धेश्वरी नमः
ॐ ऐं ज्ञानेश्वरी नमः
ॐ क्रीं योनि रूपाययै नमः
ॐ ह्रीं क्रीं भ्रं भैरव रूपिणी नमः
ॐ सिद्ध योगिनी शक्ति रूपाययै नमः
इस क्रिया के पूर्ण हो जाने के बाद आप निम्न मंत्र कि २१ माला जाप करे.
ॐ ह्रीं क्रीं सिद्धाययै सकल सिद्धि दात्री ह्रीं क्रीं नमः
जब आपका २१ माला जाप पूर्ण हो जाये तब घी में अनार के दाने मिलाकर १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.ये सम्पूर्ण क्रिया आपको नित्य करनी होगी नो दिनों तक.आहुति के समय मंत्र के अंत में स्वाहा अवश्य लगाये।
अंतिम दिवस आहुति पूर्ण होने के बाद एक पूरा अनार जमीन पर जोर से पटक कर फोड़ दे और उसका रस अग्नि कुंड में निचोड़ कर अनार उसी कुंड में डाल दे.अनार फोड़ने से निचोड़ने तक सतत जोर जोर से बोलते रहे,
सिद्ध योगिनी प्रसन्न हो।
साधना समाप्ति के बाद अगले दिन गोलक को धोकर साफ कपडे से पोछ ले और सुरक्षित रख ले.कपडे का विसर्जन कर दे.
नित्य अर्पित किया गया अनार का रस और गुड साधक स्वयं ग्रहण करे.सम्भव हो तो एक कन्या को भोजन करवाकर दक्षिणा दे,ये सम्भव न हो तो देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ मिठाई का दान कर दे.
इस प्रकार ये दिव्य साधना पूर्ण होती है.निश्चय ही अगर साधना पूर्ण मनोभाव और समर्पण के साथ कि जाये तो साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते है.और जीवन को एक नविन दिशा मिलती ही है.तो अब देर कैसी आज ही संकल्प ले और साधना के लिए आगे बड़े.
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Wednesday, March 21, 2018
क्या आप को पता है हर प्रकार की सफलता के लिए करे राजमुखी देवी की साधना !
क्या आप को पता है हर प्रकार की सफलता के लिए करे राजमुखी देवी की साधना !
जीवन में सभी व्यक्तियो का यह एक सुमधुर स्वप्न होता है की उसे सभी क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति हो तथा उसे जीवन के सभी क्षेत्र में विजय श्री तिलक की प्राप्ति हो !
चाहे वह स्वयं के ज्ञान की बात हो, पारिवारिक सुख शांति, भौतिक रूप से सफलता, समाज में मान तथा सन्मान, अध्यात्मिक उन्नति, तथा जीवन के पूर्ण सुख रस का उपभोग करना हो, कौन व्यक्ति अपने जीवन में एसी सफलता की प्राप्ति नहीं करना चाहता !
निश्चित रूप से सभी व्यक्ति अर्वाचीन या प्राचीन दोनों ही काल में इस प्रकार की सफलता की कामना करते थे और इसकी पूर्ती के लिए अथाक परिश्रम भी करने वालो की कमी किसी भी युग में नहीं थी !
लेकिन ब्रह्माण्ड कर्म से बद्ध है, व्यक्ति अपने कार्मिक वृतियो के कारण चाहे वह इस जन्म से सबंधित हो या पूर्व जन्म से सबंधित, कई बार पूर्ण श्रम करने के बाद भी सफलता की प्राप्ति नहीं कर पता है !
इन सब के मूल में कई प्रकार के दोष हो सकते है ! लेकिन इन दोषों की निवृति के लिए व्यक्ति को स्वयं ही तो प्रयत्न करना पड़ेगा !
प्रस्तुत प्रयोग, साधक और उसकी सफलता के बिच में आने वाली बाधा को दूर करने का एक अद्भुत विधान है ! प्रस्तुत प्रयोग राजमुखी देवी से सबंधित है जो की आद्य देवी महादेवी का ही एक स्वरुप है, जो की साधक को राज अर्थात पूर्ण सुख भोग की प्राप्ति कराती है ! प्रस्तुत प्रयोग के कई प्रकार के लाभ है लेकिन कुछ महत्त्वपूर्ण पक्ष इस प्रकार से है !
यह त्रिबीज सम्पुटित साधना है जो की साधक की तीन शक्ति अर्थात, ज्ञान, इच्छा तथा क्रिया को जागृत करता है फल स्वरुप साधक की स्मरणशक्ति का विकास होता है तथा नूतन ज्ञान को समजने में सुभिधा मिलती है !
राजमुखी देवी को वशीकरण की देवी भी कहा गया है, साधक के चहरे पर एक ऐसा वशीकरण आकर्षण छा जाता है जिसके माध्यम से साधक कई कई क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति कर सकता है तथा कई व्यक्ति स्वयं ही साधक को अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति मान लेने के लिए आकर्षण बद्ध हो जाते है !
मुख्य रूप से कार्यसिद्धि के लिए यह प्रयोग है लेकिन यहाँ सिर्फ कोई विशेष कार्य के लिए यह प्रयोग न हो कर साधक के सभी कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग है ! इस प्रयोग को करने पर साधक को अपने कार्यों में सफलता का मिलना सहज होने लगता है साथ ही साथ साधक को समाज में मान सन्मान की भी प्राप्ति होने लगती है !
साधना की विधि :-
यह प्रयोग साधक किसी भी शुभदिन में शुरू कर सकता है ! साधक दिन या रात्री के कोई भी समय में यह साधना कर सकता है लेकिन रोज साधना का समय एक ही रहे !
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर गुलाबी वस्त्रों को धारण करना चाहिए, अगर गुलाबी वस्त्र किसी भी रूप में संभव न हो तो साधक को सफ़ेद वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए !
इसके बाद साधक गुलाबी/सफ़ेद आसान पर बैठ जाए तथा गुरुपूजन एवं गुरुमन्त्र का जाप करे ! साधक को इसके बाद अपने सामने किसी पात्र में कुमकुम से एक अधः त्रिकोण का निर्माण करना चाहिए !
इसके बाद साधक उस त्रिकोण के मध्य में एक दीपक स्थापित करे. यह दीपक तेल का हो ! इसे प्रज्वलित कर साधक न्यास क्रिया को सम्प्पन करे
करन्यास : –
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अन्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ राजमुखी तर्जनीभ्यां नमः
ॐ वश्यमुखी मध्यमाभ्यां नमः
ॐ महादेवी अनामिकाभ्यां नमः
ॐ सर्वजन वश्य कुरु कुरु कनिष्टकाभ्यां नमः
ॐ सर्व कार्य साधय साधय नमः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अंगन्यास : –
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हृदयाय नमः
ॐ राजमुखी शिरसे स्वाहा
ॐ वश्यमुखी शिखायै वषट्
ॐ महादेवी कवचाय हूं
ॐ सर्वजन वश्य कुरु कुरु नैत्रत्रयाय वौषट्
ॐ सर्व कार्य साधय साधय नमः अस्त्राय फट्
उसके बाद मूल मन्त्र की ११ माला मन्त्र का जाप करे !
यह जाप साधक स्फटिक/रुद्राक्ष/मूंगा/गुलाबीहकीक माला से कर सकता है.
मन्त्र : –
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं राजमुखी वश्यमुखी महादेवी सर्वजन वश्य कुरु कुरु सर्व कार्य साधय साधय नमः
११ माला होने पर साधक देवी को मन ही मन वंदन करे तथा जाप उनको समर्पित कर दे !
इस प्रकार साधक को यह क्रम ३ दिन तक रखना चाहिए.
३ दिन बाद साधक दीपक तथा पात्र को धो सकता है तथा पुनः किसी भी कार्य में उपयोग कर सकता है.
माला का विसर्जन नहीं करना है, इस माला का प्रयोग साधक आगे भी इस साधना हेतु कर सकता है !
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Monday, March 19, 2018
भैरवी तंत्र भैरवी विद्या
भैरवी तंत्र भैरवी विद्या
तंत्र का वह मार्ग जिसमे भैरवी को आधार मानकर साधना की जाती है अर्थात जिसमे स्त्री देवी और पुरुष देवता स्वरुप होकर साधना करते हैं अर्थात जिसमे स्त्री भैरवी और पुरुष भैरव स्वरुप होकर साधना करते हैं अर्थात जिसमे स्त्री महामाया का अंश और पुरुष सदाशिव का अंश हो साधना करते हैं ,भैरवी तंत्र कहलाता है|
मूलतः यह कौल मार्ग की साधना है ,पर अन्य मार्गों में भी इसके विविध रूप उपयोग होते हैं |यह कौल मार्ग की भैरवी विद्या है जिसे श्री विद्या भी कहा जाता है |इसके कई रूप विभिन्न मार्गों में विभिन्न स्वरूपों में प्रयोग किये जाते हैं |
यह आध्यात्मिक क्षेत्र की सर्वाधिक विवादास्पद विद्या है |इसके सम्बन्ध में भारी भ्रम फैले हुए हैं और इन भ्रमो के कारण इसकी सर्वाधिक आलोचना भी होती रही है |
इस विद्या के सिद्ध आचार्यों का कथन सत्य है की अज्ञानता में डूबे पशु साधक जो कर्मकाण्ड के नियमों ,आचार संहिता के कठोर नियमों का पालन करके साधना करते हैं ,वे एक कल्पना जगत में जीते हैं ,जिनका निर्माण वे स्वयं करते हैं |
"श्री विद्या" के अतिरिक्त तमाम मार्ग कृत्रिम मानव निर्मित हैं ,केवल यही एक विद्या है ,जो प्राकृतिक है और स्वयं परमात्मा [सदाशिव] द्वारा उत्पादित है |
यह बार सत्य भी है | सृष्टि की उत्पत्ति और उसके विकास के वैज्ञानिक सूत्रों को बताने वाली विद्या केवल यही है |जो लोग अध्यात्म के चरम ज्ञान को प्राप्त कर लेने का दावा करते हैं ,उन्हें भी इस विद्या में बताये गए गोपनीय सृष्टि सूत्र और ऊर्जा सूत्र का ज्ञान नहीं है |
यह केवल इस विद्या के पक्ष में दिया गया तर्क नहीं है ,अपितु इसका ठोस वैज्ञानिक आधार है |अब तक हुए सभी महान साधकों ने किसी न किसी रूप में इस विद्या की साधना अवश्य की है ,,उन्होंने भैरवी का उपयोग किया या नहीं यह एक विवादस्पद विषय है |
निःसंदेह यह विद्या गोपनीय है और इसकी साधनाओं एवं क्रिया कलापों के बारे में बहुत विशेष विवरण नहीं मिलता |
यह केवल गुरु-शिष्य परंपरा में प्रतिपादित मार्ग है और इसके साधक अपना व्यक्तित्व तक गुप्त रखते हैं |वे साधना रहस्यों को प्रकाशित करने की सोच भी नहीं सकते |जो शास्त्रों में वर्णित है ,वह अपर्याप्त है और अनेक भ्रम भी उत्पन्न करता है |
सामाजिक आवरणों से लिप्त है अथवा मिथकों -कथाओं के रूप में वर्णित है |
यह सोचना निहायत ही अवैज्ञानिक और अज्ञानता है की शक्ति ,सिद्धि और ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग कठोर आचरण संहिता का पालन करके ही प्राप्त किया जा सकता है |
आधुनिक विज्ञान भी इस प्रकृति की ही शक्ति प्राप्त करके मनुष्य के लिए असंभव कृत्यों को संभव बनाता जा रहा है |यही कार्य साधना द्वारा भी होता है और सिद्धि अर्थात शक्ति प्राप्त की जाती है इसी प्रकृति के ऊर्जा सूत्रों और नियमों से |
आध्यात्मिक मार्ग की शक्तियां सूक्ष्म अवश्य हैं ,पर वे प्रकृति की ही शक्तियां हैं ,जिन्हें हम अपने शरीर को यन्त्र बनाकर प्राप्त करते हैं |इसके लिए कठोर आचरण संहिता और विशालतम विधि विधान का पालन आवश्यक नहीं है |
जरुरत है मूल सूत्र को ,मूल नियम को पकड़कर शक्ति प्राप्त और नियंत्रित करने की |यह इस विद्या का मूल सूत्र है |जिस प्रकार धन और ऋण के संयोग से यह समस्त प्रकृति की उत्पत्ति है ,उसी प्रकार धन-ऋण के आपसी सहयोग से शक्ति और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है ,यह विद्या उस मार्ग का रास्ता दिखता है | इस प्रकृति का सार सूत्र है ऊर्जा ,अर्थात शक्ति |
इन्ही शक्तियों को विभिन्न वर्गों के रूप में हम देवियों या देवताओं के रूप में जानते हैं |जिन स्वरूपों की हम आराधना करते हैं वे भाव रूप हैं और इनकी कल्पना की जाती है |
इस समस्त रहस्यों को भी यह विद्या स्पष्ट बताती है ,पौराणिक कथाओं की तरह भ्रम में नहीं डालती |कथाएं इसमें भी होती हैं ,पर यह बताया जाता है की इन कथाओं में गूढ़ रहस्य छिपे हैं |
कथा महत्व पूर्ण नहीं है ,इनमे छिपा रहस्य सार सबकुछ है |जबकि होता है समाज में उल्टा ,कथाओं को ही सच्चाई मानकर कल्पना लोक में लोग जीते रहते हैं |
प्रकृति का समस्त ऊर्जा चक्र ,यहाँ तक की कृत्रिम भी धनात्मक और ऋणात्मक के मध्य चल रहा है |सभी आविष्कारों का भी सार सूत्र यही होता है ,क्योकि इस ऊर्जा रूप प्रकृति की उत्पत्ति ही इसी सार सूत्र पर होती है |
श्री विद्या या भैरवी विद्या या भैरवी तंत्र इस समस्त सार सूत्र के रहस्य की एक एक परत हटाकर बताता है की हमारा ऋणात्मक नारी है |नारी के स्पर्श ,क्रीडा ,केलि ,रतिक्रीड़ा के मध्य हमारा ऊर्जा प्रवाह आठ से पच्चीस गुना बढ़ जाता है |
यदि इसे हम शक्ति ,सिद्धि ,समाधि आदि में प्रयोग करें ,तो सब कुछ अत्यंत सरल हो जाता है ,शून्य समाधि भी |यही इस मार्ग का सूत्र है ,मार्ग की शक्ति है |
अर्थात स्त्री और पुरुष की शारीरिक -मानसिक ऊर्जा का उपयोग कर आध्यात्मिक लक्ष्य और ईष्ट प्राप्त करना अथवा परम ऊर्जा का साक्षात्कार इस मार्ग का मूल मंत्र है |
धनात्मक और ऋणात्मक के शार्ट सर्किट से उत्पन्न तीब्र उर्जा को नियंत्रित कर ईष्ट प्राप्ति अथवा लक्ष्य प्राप्ति की और मोड़कर लक्ष्य प्राप्त करना यह मार्ग बताता है |.
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Thursday, March 1, 2018
क्या सुंदर स्त्रियां हमेशा पुरुषों की कमजोरी रही हैं, जानें स्वर्ग की अप्सराओं के बारें में अदभुत बातें
क्या सुंदर स्त्रियां हमेशा पुरुषों की कमजोरी रही हैं, जानें स्वर्ग की अप्सराओं के बारें में अदभुत बातें
सुंदर स्त्रियां हमेशा पुरुषों की कमजोरी रही हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं में ऐसी अपूर्व सुंदरियों का उल्लेख मिलता है जो अपनी मोहक और कामुक अदाओं से किसी को भी अपना दीवाना बना देती थीं।
इन्हें अप्सरा कहा जाता है और माना जाता है कि ये स्वर्ग लोक में रहती हैं। देवताओं द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में इनका उपयोग किया जाता था। किसी को भी दीवाना बना देती थीं ये खूबसूरत युवतियां इनकी मोहक अदाओं में फंसकर अपना सब कुछ गवां बैठते थे महान और प्रभावशाली कहे जाने वाले लोग।
आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।
चार अप्सराएं थीं सबसे खूबसूरत
ऋग्वेद और महाभारत में कई अप्सराओं का उल्लेख है। स्वर्ग की चार अत्यंत सुंदर जिन चार अप्सराओं का ज्यादातर उल्लेख किया जाता है उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, रंभा और तिलोत्तमा। कहा जाता है कि इन्होंने अपने रूप, सौंदर्य और कामुक अदाओं से कई ऋषि मुनियों की तपस्या भंग की और उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया।
विश्वामित्र को रिझाया था अप्सरा ने
कहा जाता है कि अप्सराओं का सबसे ज्यादा उपयोग इंद्र ने किया। ऋषि विश्वामित्र की कठोर तपस्या से इंद्र को यह भय हुआ कि वे कहीं उनके सिंहासन पर कब्जा न कर लें। जिस पर उन्होंने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने उस समय की नामी अप्सरा रंभा को पृथ्वी लोक पर भेजा।
रंभा ने अपनी मोहक अदाओं से विश्वामित्र को लुभाने का प्रयास किया पर विश्वामित्र ने उसे श्राप दे दिया और वह पाषाण मूर्ति बन गई। रंभा के असफल रहने पर इंद्र ने रंभा से भी ज्यादा खूबसूरत अप्सरा मेनका को भेजा जिसने पहले एक युवती का रूप धरा और फिर अपनी मोहक व कामुक अदाओं से विश्वामित्र को वश में कर उनका तप भंग कर दिया। दोनों के संसर्ग से एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम शकुंतला रखा गया जिसका पालन पोषण कण्व ऋषि ने किया।
अप्सरा के लिए मर मिटे ये राक्षस
एक बार पृथ्वी पर जब सुंद और उपसुंद नामक राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया तो उनके संहार के लिए तिलोत्तमा नामक अप्सरा का सहारा लिया गया। देवताओं ने उसे उन दोनों के पास भेजा। दोनों राक्षस उसके सौंदर्य पर रीझ गए और उसे पाने के लिए आपस में लड़ कर मर गए।
अर्जुन को श्राप
महाभारत के एक दृष्टांत के अनुसार एक बार इन्द्रदेव ने अपने पुत्र अर्जुन को स्वर्ग लोक में आमंत्रित किया। वहां उर्वशी ने उसके सामने नृत्य प्रस्तुत किया बाद में इंद्र ने उर्वशी से अर्जुन को प्रसन्न करने को कहा। जब उर्वशी अर्जुन के कक्ष में पहुंची और उसे आमंत्रित किया तो अर्जुन ने मना कर दिया जिस पर उर्वशी ने अर्जुन को शिखंडी होने का श्राप दे दिया। फलस्वरूप अर्जुन को एक साल तक वृहन्नलला के रूप में रहना पड़ा।
अप्सरा रंभा के विलक्षण मंत्र
आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।
रंभा के मंत्र सिद्ध होने पर वह साधक के साथ छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है।
यह जीवन की सर्वश्रेष्ठ साधना है। जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी, संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को। इस साधना से प्रेम और समर्पण के गुण व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होते हैं क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बीमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जाएगा। प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है रंभा साधना।
साधना विधि
सामग्री - प्राण प्रतिष्ठित रंभोत्कीलन यंत्र, रंभा माला, सौंदर्य गुटिका तथा साफल्य मुद्रिका।
यह रात्रिकालीन 27 दिन की साधना है। इस साधना को किसी भी पूर्णिमा या शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष मुहूर्त में प्रारंभ करें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। घी का दीपक जला लें। सामने चौकी पर एक थाली रख लें, दोनों हाथों में गुलाब की पंखुडियां लेकर रंभा का आह्वान करें।
|| ॐ ! रंभे अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||
यह आवश्यक है कि यह आह्वान कम से कम 101 बार अवश्य हो प्रत्येक आह्वान मंत्र के साथ गुलाब की पांखुरी थाली में रखें। इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पांखुरियों से भर दें।
अब अप्सरा माला को पांखुरियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडकें। रंभोत्कीलन यंत्र को माला के ऊपर आसन पर स्थापित करें। गुटिका को यन्त्र के दाएं तरफ तथा साफल्य मुद्रिका को यंत्र के बाएं तरफ स्थापित करें। सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए।
सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मंत्र जप कर लें। फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन संपन्न करें। स्नान, तिलक, धूप, दीपक एवं पुष्प चढ़ाएं।
इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मंत्रों को बोलकर यंत्र पर चढ़ाएं।
|| ॐ दिव्यायै नमः ||
|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||
|| ॐ वागीश्वर्ये नमः ||
|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||
|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||
|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||
|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||
|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||
|| ॐ धनदायै रम्भायै नमः ||
|| ॐ आरोग्य प्रदायै नमः ||
इसके बाद प्रतिदिन निम्नलिखित मंत्र से 11 माला प्रतिदिन जप करें |
मंत्र : || ॐ हृीं रं रम्भे ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||
प्रत्येक दिन अप्सरा आह्वान करें। हर शुक्रवार को दो गुलाब की माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एकदम बढ़ने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें।
27 दिन की साधना में प्रत्येक दिन नए-नए अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भाव बढ़ने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है।
साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका अंगुली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह सुपरिक्षित साधना है। पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है।
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