छुपी है मंत्रों में अलौकिक शक्तियां
मंत्र-तंत्र-यंत्र में असीम अलौकिक शक्तियां निहित है। इसके द्वारा नर से नारायण बना जा सकता है। आवश्यकता है सविधि साधना के साथ-साथ श्रध्दा एवं विश्वास की। अब प्रश्न उठता है कि मंत्र-तंत्र-यंत्र आखिर क्या है?
अभी हम मंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मंत्र शब्दों या वाक्यों का वह वर्ण समूह है, जिसके निरंतर मनन से विशेष शक्ति प्राप्त की जाती है। मंत्र शास्त्र हमारे दिव्य दृष्टि युक्त ऋषि महर्षियों की देन है। मंत्र का सीधा संबंध मानव के मन से ही है, मन की एकाग्रता एवं तन्मयता मंत्र सिध्दि की मंजिल तक पहुंचाती है। मन को एकाग्र करके किसी भी देवी-देवता की सिध्दि प्राप्त की जा सकती है। मन की चंचलता हमें सामान्य रूप से किसी भी क्षेत्र में या कार्य में सफलता नहीं दिलवा सकती है। जब हम अपने को भौतिक जगत में असफल पाते हैं तो मंत्रों के रहस्यात्मक आलौकिक देव जगत में कैसे सफल हो सकते हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। आज का मानव पूर्वापेक्षा अधिक परेशान है। वह जटिल समस्याओं के भंवर में बुरी तरह फंस चुका है।
भटका हुआ मानव
उसे सही रास्ते में तलाश है। भटका हुआ मानव अपने आप में ही परेशान है। उचित क्या है, उसे और क्या करना है और क्या नहीं करना है वह स्वयं निश्चय नहीं कर पाता है। अविश्वास के गहन अंधकार में दिग्भ्रमित होकर चक्कर काट रहा है। आज का बुध्दिजीवी वर्ग तो और भी ज्यादा परेशान है। परेशानी का मूल कारण है अपने आप को एडजस्ट न कर पाना। उसकी दिली तमन्ना रहती है कि उसकी हर चाह पूरी हो। यह हकीकत है कि हर तमन्ना तो एक शहंशाह की भी पूरी नहीं होती। हम दैनिक जीवन में आने वाली बहुत-सी समस्याओं का समाधान एवं इच्छित पदार्थों की प्राप्ति मंत्र की साधना से प्राप्त कर सकते हैं।
कार्य कोई भी हो व्यक्ति विशेष के भाग्य के अनुसार ही पूरा होता है। उसी प्रकार मंत्र-यंत्र-तंत्र की साधना का फल भी भाग्य के अनुसार ही प्राप्त होता है किसी को कम किसी को ज्यादा। सोये हुए भाग्य को जागृत करने में भगवत आराधना, तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना, अति सहायक सिध्द होती है। मंत्र शास्त्र के अन्तर्गत विविध कार्यों के लिये विविध मंत्र मिलते हैं। मंत्र मानव के विभिन्न कार्यों के अनुसार निश्चित हैं।
मूल रूप से वैदिक, साबर एवं तांत्रिक मंत्र है। वैदिक एवं साबर ये दोनों मंत्र एक साथ नहीं जपे जाते। साबर मंत्र अपने आप में स्वयं सिध्द है। गुरु गोरखनाथ एवं भगवान दत्तात्रेय द्वारा कृत ये मंत्री अत्यंत ही चमत्कारिक एवं प्रभाविक हैं।
मंत्र शास्त्र के अनुसार किसी मंत्र विशेष का निरंतर मनन करना यानि जपना मंत्र सिध्दि का सुलभ मार्ग है। ग्रह जनित पीड़ा, दोष, अनिष्ठ निवारण, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु भगवत आराधना एवं मंत्र साधना अत्यंत ही कारगर सिध्द होती है। मंत्र साधना के द्वारा आत्मिक शक्ति को जाग्रत करके घातक रोगों से भी मुक्ति पायी जा सकती है। मंत्र साधना के द्वारा हम अपने जीवन को सुखपन, शांतिमय साथ ही साथ आनंदमय बनाने में सफल हो सकते हैं।
अमूल्य निधि
मंत्र शास्त्र भारत की प्राचीन अमूल्य निधि है इस विद्या का प्रचार एवं प्रसार करना, सर्वहितकारी एवं इस लोक के सामान्य जन के लिये प्रस्तुत करना तथा शोध के द्वारा अनुभवों में सत्य पाये गये मंत्र तंत्र यंत्र की जानकारी देना, जिससे आज के जन लाभ प्राप्त कर सकें और अपना जीवन सहज रूप में व्यतीत कर सकें, यही मेरा उद्देश्य है। यंत्र-मंत्र-तंत्र के साधक का परम पिता परमेश्वर पर असीम विश्वास रहता है। वे अपने सारे कार्य प्रभु कृपा को सुपुर्द कर देते हैं प्रभु की इच्छा ही साधक की इच्छा होती है और साधक की इच्छी ही प्रभु की इच्छा होती है। साधक को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं खटकती है। उसे अपार आंतरिक सुख की अनुभूति होती है, उसका सीधा संबंध इष्ट देवता से यानि जिस देवता के मंत्र का साधक है, बना रहता है। उच्चकोटि के साधकों को भूत, भविष्य तथा वर्तमान का भी ज्ञान रहता है, ऐसे चमत्कार हमको प्राय: सुनने एवं पढ़ने को मिलते रहते हैं। उच्च कोटि के साधक को, जो भाव से साधना करते हैं उन्हें प्रभु चाह के अतिरिक्त और कोई चाह नहीं रहती। जहां प्रभु ही मिल गये वहां कमी किस बात की।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08601454449
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
मंत्र-तंत्र-यंत्र में असीम अलौकिक शक्तियां निहित है। इसके द्वारा नर से नारायण बना जा सकता है। आवश्यकता है सविधि साधना के साथ-साथ श्रध्दा एवं विश्वास की। अब प्रश्न उठता है कि मंत्र-तंत्र-यंत्र आखिर क्या है?
अभी हम मंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मंत्र शब्दों या वाक्यों का वह वर्ण समूह है, जिसके निरंतर मनन से विशेष शक्ति प्राप्त की जाती है। मंत्र शास्त्र हमारे दिव्य दृष्टि युक्त ऋषि महर्षियों की देन है। मंत्र का सीधा संबंध मानव के मन से ही है, मन की एकाग्रता एवं तन्मयता मंत्र सिध्दि की मंजिल तक पहुंचाती है। मन को एकाग्र करके किसी भी देवी-देवता की सिध्दि प्राप्त की जा सकती है। मन की चंचलता हमें सामान्य रूप से किसी भी क्षेत्र में या कार्य में सफलता नहीं दिलवा सकती है। जब हम अपने को भौतिक जगत में असफल पाते हैं तो मंत्रों के रहस्यात्मक आलौकिक देव जगत में कैसे सफल हो सकते हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। आज का मानव पूर्वापेक्षा अधिक परेशान है। वह जटिल समस्याओं के भंवर में बुरी तरह फंस चुका है।
भटका हुआ मानव
उसे सही रास्ते में तलाश है। भटका हुआ मानव अपने आप में ही परेशान है। उचित क्या है, उसे और क्या करना है और क्या नहीं करना है वह स्वयं निश्चय नहीं कर पाता है। अविश्वास के गहन अंधकार में दिग्भ्रमित होकर चक्कर काट रहा है। आज का बुध्दिजीवी वर्ग तो और भी ज्यादा परेशान है। परेशानी का मूल कारण है अपने आप को एडजस्ट न कर पाना। उसकी दिली तमन्ना रहती है कि उसकी हर चाह पूरी हो। यह हकीकत है कि हर तमन्ना तो एक शहंशाह की भी पूरी नहीं होती। हम दैनिक जीवन में आने वाली बहुत-सी समस्याओं का समाधान एवं इच्छित पदार्थों की प्राप्ति मंत्र की साधना से प्राप्त कर सकते हैं।
कार्य कोई भी हो व्यक्ति विशेष के भाग्य के अनुसार ही पूरा होता है। उसी प्रकार मंत्र-यंत्र-तंत्र की साधना का फल भी भाग्य के अनुसार ही प्राप्त होता है किसी को कम किसी को ज्यादा। सोये हुए भाग्य को जागृत करने में भगवत आराधना, तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना, अति सहायक सिध्द होती है। मंत्र शास्त्र के अन्तर्गत विविध कार्यों के लिये विविध मंत्र मिलते हैं। मंत्र मानव के विभिन्न कार्यों के अनुसार निश्चित हैं।
मूल रूप से वैदिक, साबर एवं तांत्रिक मंत्र है। वैदिक एवं साबर ये दोनों मंत्र एक साथ नहीं जपे जाते। साबर मंत्र अपने आप में स्वयं सिध्द है। गुरु गोरखनाथ एवं भगवान दत्तात्रेय द्वारा कृत ये मंत्री अत्यंत ही चमत्कारिक एवं प्रभाविक हैं।
मंत्र शास्त्र के अनुसार किसी मंत्र विशेष का निरंतर मनन करना यानि जपना मंत्र सिध्दि का सुलभ मार्ग है। ग्रह जनित पीड़ा, दोष, अनिष्ठ निवारण, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु भगवत आराधना एवं मंत्र साधना अत्यंत ही कारगर सिध्द होती है। मंत्र साधना के द्वारा आत्मिक शक्ति को जाग्रत करके घातक रोगों से भी मुक्ति पायी जा सकती है। मंत्र साधना के द्वारा हम अपने जीवन को सुखपन, शांतिमय साथ ही साथ आनंदमय बनाने में सफल हो सकते हैं।
अमूल्य निधि
मंत्र शास्त्र भारत की प्राचीन अमूल्य निधि है इस विद्या का प्रचार एवं प्रसार करना, सर्वहितकारी एवं इस लोक के सामान्य जन के लिये प्रस्तुत करना तथा शोध के द्वारा अनुभवों में सत्य पाये गये मंत्र तंत्र यंत्र की जानकारी देना, जिससे आज के जन लाभ प्राप्त कर सकें और अपना जीवन सहज रूप में व्यतीत कर सकें, यही मेरा उद्देश्य है। यंत्र-मंत्र-तंत्र के साधक का परम पिता परमेश्वर पर असीम विश्वास रहता है। वे अपने सारे कार्य प्रभु कृपा को सुपुर्द कर देते हैं प्रभु की इच्छा ही साधक की इच्छा होती है और साधक की इच्छी ही प्रभु की इच्छा होती है। साधक को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं खटकती है। उसे अपार आंतरिक सुख की अनुभूति होती है, उसका सीधा संबंध इष्ट देवता से यानि जिस देवता के मंत्र का साधक है, बना रहता है। उच्चकोटि के साधकों को भूत, भविष्य तथा वर्तमान का भी ज्ञान रहता है, ऐसे चमत्कार हमको प्राय: सुनने एवं पढ़ने को मिलते रहते हैं। उच्च कोटि के साधक को, जो भाव से साधना करते हैं उन्हें प्रभु चाह के अतिरिक्त और कोई चाह नहीं रहती। जहां प्रभु ही मिल गये वहां कमी किस बात की।
राजगुरु जी
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